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स्वपरिचय:

 जन्म से ही परिजनों से सीखा 'अथक संघर्ष' तीसरी पीडी भी उसी राह पर!
जब मेरे पिताजी की आयु 10 वर्ष की थी तो दादा नहीं रहे,17 वर्ष की आयु में घर छूट गया. कैसे घर परिवार(2-2)चले? पढ़े 2-MALLB,सरकारी नौकरी पाई(बाबु से अधिकारी बने)सेवामुक्त हुए, पल्लेखाली, न्याय हेतु संघर्षरत रहे!माँ की भूमिका आजभी याद आती है.संघर्ष से जर्जर शरीर ने दुर्घटना से टूटीरीड़ को सम्भलने न दिया.और मई1995 बस यादें रह गयी. वह स्मरणकर आज लिखते आंसू नहीं रुकते.माँ, हमारी प्रथम गुरु,'अनवरतसंघर्ष ही जीवन है'सिखा गई.तभी तो जीवनसंग्राम का आनंद ले पाया हूँ. अपने ही नहीं समाज के लिए भी लड़ने का साहस जुटाया है.बच्चे भी जूझ रहे हैं. तिलक संपादक युगदर्पण-9911111611,9911145678, 9654675533.