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Saturday 22 January 2011

26 जनवरी गणतंत्र दिवस की एकता यात्रा व विरोध के स्वरों का निहितार्थ

26 जनवरी गणतंत्र दिवस की एकता यात्रा व विरोध के स्वरों का निहितार्थ
जबसे राज्य में उमर अब्दुल्ला मु.मं.बने हैं हम सोचते थे कि cong - PDP गठबंधन के समय बने आतंक समर्थक नेताओं के बाद अब वातावरण सुधरेगा. किन्तु यह तो PDP से बड़ा पाकि. निकला ! जब देश का तिरंगा जलाया जाता है तो इनकी सरकार आंख बंद रखती है ! जब अमरनाथ यात्रिओं को दी सुविधा की घोषणा रोक ली जाती है, जहाँ पाक समर्थक टोले को संतुष्ट करना सरकारी आवश्यकता हो! वहां मनोबल आतंकियों का बढ़ाया जाता है, सेना को अपराधी ठहराया जाता है! आवश्यक हो जाता है सेना व जानता का मनोबल बढ़ाया जाये और यह दायित्व बनता है सरकार का!  केंद्र व राज्य सरकार अपना दायित्व न निभाए तो राष्ट्रवादी सोच के दल ने यह बीड़ा उठाया ! राष्ट्रवाद के मानबिंदु राष्ट्र ध्वज को राष्ट्रीय उत्सव पर फहराना सेना व जानता के मनोबल का प्रतीक बनता है, राजनीति का नहीं ! इसका विरोध करना, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उनका साथ देना राष्ट्र के शत्रुओं का कार्य है ! राजनैतिक रोटी सेकना इसे कहते हैं ! 
सारा चित्र और स्पष्ट करने हेतु दृश्य पटल का विस्तार करते है: 
कुछ पीछे चलते हैं जब प्रधानमंत्री जी ने कश्मीर मुद्दे पर बुलाई सर्वदलीय बैठक में एक बड़ी गम्भीर और व्यापक बहस छेड़ने वाली बात कह दी कि "यदि सभी दल चाहें तो कश्मीर को स्वायत्तता दी जा सकती है…", किन्तु आश्चर्य की बात है कि भाजपा को छोड़कर किसी भी दल ने इस बात पर आपत्ति दर्ज करना तो दूर स्पष्टीकरण माँगना भी उचित नहीं समझा।हमारे एक मित्र सुरेश चिपलूनकर जी के अनुसार प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तावित "स्वायत्तता" का क्या अर्थ है? क्या प्रधानमंत्री या कांग्रेस स्वयं भी इस बारे में स्पष्ट है? या ऐसे ही हवा में कुछ वक्तव्य  उछाल दिया? कांग्रेस वाले स्वायत्तता किसे देंगे? उन लोगों को जो वर्षों से भारतीय टुकड़ों पर पल रहे हैं फ़िर भी अमरनाथ में यात्रियों की सुविधा के लिये अस्थाई रुप से भूमि का एक टुकड़ा देने में उन्हें कष्ट होने लगता है और विरोध में सड़कों पर आ जाते हैं… या स्वायत्तता उन्हें देंगे जो इस भूमि पर सरेआम भारत का तिरंगा जला रहे हैं, 15 अगस्त को "काला दिवस" मना रहे हैं?
इतने गम्भीर मुद्दे पर राष्ट्रीय मीडिया, समाचारपत्रों और चैनलों की ठण्डी प्रतिक्रिया और शून्य प्रस्तुति और भी आश्चर्य पैदा करने वाली थी। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के बाद भी, मीडिया क्या दिखा रहा था ? 1) शाहरुख खान ने KKR के लिये पाकिस्तानी खिलाड़ी को खरीदा और पाकिस्तान के खिलाड़ियों का समर्थन किया… 2) राहुल गाँधी की लोकप्रियता में भारी उछाल…, 3) पीपली लाइव की लॉंचिंग… आदि-आदि-आदि। कश्मीर की हिंसा के बारे क्या दिखाया गया ?… मात्र शीर्षक, उपशीर्षक, संकेतक और स्क्रीन में नीचे चलने वाले स्क्रोल में अधिकतर आपको "कश्मीर में गुस्सा…", "कश्मीर का युवा आक्रोशित…", "कश्मीर में सुरक्षा बलों पर आक्रोशित युवाओं की पत्थरबाजी…" जैसी खबरें दिखाई गई। प्रश्न उठता है कि क्या मीडिया और चैनलों में राष्ट्रबोध नाम की चीज़ एकदम समाप्त हो गई है? या ये किसी के संकेत पर इस प्रकार के शीर्षक दिखाते हैं?
भारत की सरकार के कई कानून वहाँ लागू नहीं, कुछ को वे मानते नहीं, उनका झण्डा अलग है, उनका संविधान अलग है! भारत सरकार (यानी प्रकारान्तर से करोड़ों टैक्स भरने वाले) तो इन कश्मीरियों को 60 साल से पाल-पोस रहे हैं,धारा 370 के तहत उन्हें प्राप्त विशेषाधिकार के कारण भारत का नागरिक वहाँ भूमि खरीद नहीं सकता, हिन्दुओं(कश्मीरी पण्डितों) को सुनियोजित" धार्मिक छटनी" के तहत कश्मीर से बाहर खदेड़ा जा चुका है… फ़िर इन्हें किस बात का आक्रोश?
कहीं यह हरामखोरी की चर्बी तो नहीं? लगता तो यही है। अन्यथा क्या कारण है कि 14-15 साल के लड़के से लेकर यासीन मलिकगिलानी और अब्दुल गनी लोन जैसे बुज़ुर्ग भी भारत सरकार से, जब देखो तब खफ़ा रहते हैं। पूरे देश का खून निचोढ़ कर खटमल पाले जा रहे हैं और खटमल ही आक्रोश दिखाए ? आश्चर्य !
जबकि दूसरी तरफ़ देखें तो भारत के नागरिक, हिन्दू संगठन, सभी कर दाता और भारत को अखण्ड देखने की चाह रखने वाले देशप्रेमी… जिनको वास्तव में गुस्सा आना चाहिये, आक्रोशित होना चाहिये, रोष जताना चाहिये… वे नपुंसक की भांति  चुपचाप बैठे और "स्वायत्तता" का राग सुन रहे थे? कोई भी उठकर ये प्रश्न नहीं करता कि कश्मीर के पत्थरबाजों को पालने, यासीन मलिक जैसे देशद्रोहियों को दिल्ली लाकर पाँच सितारा होटलों में रुकवाने और भाषण करवाने के लिये हम टैक्स क्यों दें? किसी राजदीप या बुरका दत्त ने कभी किसी कश्मीरी पण्डित का इंटरव्यू लिया कि उसमें कितना आक्रोश है? 
लाखों हिन्दू लूटे गये, बलात्कार किये गये, उनके मन्दिर तोड़े गये, क्योंकि गिलानी के पाकिस्तानी आका ऐसा चाहते थे, तो जिन्हें गुस्सा आया होगा कभी उन्हें किसी चैनल पर दिखाया? नहीं दिखाया, क्यों? क्या आक्रोशित होने और गुस्सा होने का अधिकार केवल कश्मीर के हुल्लड़बाजों को ही है, राष्ट्रवादियों को नहीं?
किन्तु जैसे ही "राष्ट्रवाद" की बात की जाती है, मीडिया को हुड़हुड़ी का बुखार आ जाता है, राष्ट्रवाद की बात करना, हिन्दू हितों की बात करना तो मानो वर्जित ही है… किसी टीवी एंकर की औकात नहीं है कि वह कश्मीरी पण्डितों की दुर्गति और नारकीय परिस्थितियों पर कोई कार्यक्रम बनाये और उसे शीर्षक बनाकर जोर-शोर से प्रचारित कर सके, कोई चैनल देश को यह नहीं बताता कि आज तक कश्मीर के लिये भारत सरकार ने कितना-कुछ किया है, क्योंकि उनके मालिकों को "राजनीति के अनुसार" रहना है, उन्हें कांग्रेस को रुष्ट नहीं करना है… स्वाभाविक सी बात है कि तब जनता पूछेगी कि इतना पैसा खर्च करने के बाद भी कश्मीर में बेरोज़गारी क्यों है? विगत 60 वर्ष से कश्मीर में किसकी सरकार चल रही थी? दिल्ली में बैठे सूरमा, खरबों रुपये खर्च करने बाद भी कश्मीर में शान्ति क्यों नहीं ला सके? ऐसे असुविधाजनक प्रश्नों से "शर्म-निरपेक्ष" भी बचना चाहता है, इसलिये हमें समझाया जाता रहा है कि "कश्मीरी युवाओं में आक्रोश और गुस्सा" है।
इधर अपने देश में गद्दार श्रेणी का मीडिया है, प्रस्तुत चित्र में देखिये "नवभारत टाइम्स अखबार" चित्र के शीर्षक में लिखता है "कश्मीरी मुसलमान महिला" और "भारतीय पुलिसवाला", क्या अर्थ है इसका? क्या नवभारत टाइम्स संकेत करना चाहता है कि कश्मीर भारत से अलग हो चुका है और भारतीय पुलिस(?) कश्मीरी मुस्लिमों पर अत्याचार कर रही है? यही तो पाकिस्तानी और अलगाववादी कश्मीरी भी कहते हैं… हास्यास्पद लगता है जब यही मीडिया संस्थान "अमन की आशा" टाइप के आलतू-फ़ालतू कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं। 
जबकि उधर पाकिस्तान में उच्च स्तर पर सभी के सभी लोग कश्मीर को भारत से अलग करने में जी-जान से जुटे हैं, इसका प्रमाण यह है कि हाल ही में जब संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान किं मून ने कश्मीर के सन्दर्भ में अपना विवादास्पद बयान पढ़ा था (बाद में उन्होंने कहा कि यह उनका मूल बयान नहीं है)... वास्तव में बान के बयान का आलेख बदलने वाला व्यक्ति संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का प्रवक्ता फ़रहान हक है, जिसने मूल बयान में हेराफ़ेरी करके उसमें "कश्मीर" जोड़ दिया। फ़रहान हक ने तो अपने देश के प्रति देशभक्ति दिखाई, किन्तु भारत के तथाकथित सेकुलरिज़्म के पैरोकार क्यों अपना मुँह सिले बैठे रहते हैं? 
विश्व भर में दाऊद इब्राहीम का पता लेकर घूमते रहते हैं… दाऊद यहाँ है, दाऊद वहाँ है, दाऊद ने आज खाना खाया, दाऊद ने आज पानी पिया… अरे भाई, देश की जनता को इससे क्या मतलब? देश की जनता तो तब खुश होगी, जब सरकार "रॉ" जैसी संस्था के आदमियों के सहयोग से दाऊद को पाकिस्तान में घुसकर निपटा दें… और फ़िर मीडिया भारत की सरकार का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुणगान करे… यह तो मीडिया और सरकार से बनेगा नहीं… इसलिये "अमन की आशा" का राग अलापते हैं…।
दिल्ली और विभिन्न राज्यों में एक "अल्पसंख्यक आयोग" और "मानवाधिकार आयोग" नाम के दो "बिजूके" बैठे हैं, किन्तु  इनकी दृष्टी में कश्मीरी हिन्दुओं का कोई मानवाधिकार नहीं है, गलियों से आकर पत्थर मारने वाले, गोलियाँ चलाने वालों से सहानुभूति है, किन्तु अपने घर-परिवार से दूर रहकर 24 घण्टे अपना दायित्व निभाने वाले सैनिक के लिये कोई मानवाधिकार नहीं? मार-मारकर भगाये गये कश्मीरी पण्डित इनकी दृष्टी में "अल्पसंख्यक" नहीं हैं, क्योंकि "अल्पसंख्यक" की परिभाषा भी तो इन्हीं कांग्रेसियों द्वारा गढ़ी गई है। 
जब मनमोहन सिंह जी को यह कहना तो याद रहता है कि "देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है…", किन्तु कश्मीरी पंडितों के दर्द और लाखों अमरनाथ यात्रियों के औचित्यपूर्ण अधिकार के मुद्दे पर उनके मुँह में दही जम जाता है। तब सारा शासन प्रशासन, उनके सहारे चलते राज्य सभी उसका अनुसरण ही करेंगे ! वास्तव में गाँधीवादियों, सेकुलरों और मीडिया ने मिलकर एकदम "बधियाकरण" ही कर डाला है देश का… देशहित से जुड़े किसी मुद्दे पर कोई सार्थक बहस नहीं, भारत के हितों से जुड़े मुद्दों पर देश का पक्ष लेने की बजाय, या तो विदेशी ताकतों का गुणगान या फ़िर देशविरोधी ताकतों के प्रति सहानुभूति पैदा करना… आखिर कितना गिरेगा हमारा मीडिया? 
अब जबकि खरबों रुपये खर्च करने के बाद भी कश्मीर की स्थिति 20 वर्ष पूर्व जैसी ही है, तो समय आ गया है कि हमें गिलानी-यासीन जैसों से दो-टूक बात करनी चाहिये कि आखिर किस प्रकार की आज़ादी चाहते हैं वे? कैसी स्वायत्तता चाहिये उन्हें? क्या स्वायत्तता का अर्थ यही है कि भारत उन लोगों को अपने आर्थिक संसाधनों से पाले-पोसे, वहाँ बिजली परियोजनाएं लगाये, बाँध बनाये… यहाँ तक कि डल झील की सफ़ाई भी केन्द्र सरकार करवाये? उनसे पूछना चाहिये कि 60 वर्ष में भारत सरकार ने जो खरबों रुपया दिया, उसका क्या हुआ? उसके बदले में पत्थरबाजों और उनके आकाओं ने भारत को एक पैसा भी लौटाया? क्या वे केवल बेशर्मी का खाना ही जानते हैं, चुकाना नहीं?
गलती पूरी तरह से उनकी भी नहीं है, नेहरु ने अपनी गलतियों से जिस कश्मीर को हमारी छाती पर बोझ बना दिया था, उसे ढोने में सभी सरकारें लगी हुई हैं… जो वर्ग विशेष को खुश करने के चक्कर में कश्मीरियों की सेवा करती रहती हैं। ये जो बार-बार मीडियाई भाण्ड, कश्मीरियों का गुस्सा, युवाओं का आक्रोश जैसी बात कर रहे हैं, यह आक्रोश और गुस्सा मात्र  "पाकिस्तानी" भावना रखने वालों के दिल में ही है, अन्यों के दिल में नहीं, तो यह लोग मशीनगनों से गोलियों की बौछार खाने की औकात ही रखते हैं जो कि उन्हें दिखाई भी जानी चाहिये…, उलटे यहाँ तो सेना पूरी तरह से हटाने की बात हो रही है। अलगाववादियों से सहानुभूति रखने वाला देशभक्त हो ही नहीं सकता, उन्हें जो भी सहानुभूति मिलेगी वह विदेश से…। चीन ने जैसे थ्येन-आनमन चौक में विद्रोह को कुचलकर रख दिया था… अब तो वैसा ही करना पड़ेगा। 
कश्मीर को 5 वर्ष के लिये पूरी तरह सेना को सौंप दो, अलगाववादी नेताओं को बंद करके जेल में सड़ाओ या उड़ाओ, धारा 370 समाप्त करके जम्मू से हिन्दुओं को कश्मीर में बसाना शुरु करो और उधर का जनसंख्या सन्तुलन बदलो…विभिन्न प्रचार माध्यमों से मूर्ख कश्मीरी उग्रवादी नेताओं और "भटके हुए नौजवानों"(?) को समझाओ कि भारत के बिना उनकी औकात दो कौड़ी की भी नहीं है… क्योंकि यदि वे पाकिस्तान में जा मिले तो नर्क मिलेगा और उनके दुर्भाग्य से "आज़ाद कश्मीर"(?) बन भी गया तो अमेरिका वहाँ किसी न किसी बहाने कदम जमायेगा…, अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी की चिंता मत करो… पाकिस्तान जब भी कश्मीर राग अलापे, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का मुद्दा जोरशोर से उठाओ…ऐसे कई-कई कदम हैं, जो तभी उठ पायेंगे, जब मीडिया सरकार का साथ दे और "अमन की आशा" जैसी नॉस्टैल्जिक उलटबाँसियां न करे…। 
किन्तु अमेरिका क्या कहेगा, पाकिस्तान क्या सोचेगा, संयुक्त राष्ट्र क्या करेगा, चीन से सम्बन्ध खराब तो नहीं होंगे जैसी "मूर्खतापूर्ण और कायरतापूर्ण सोचों" के कारण ही हमने इस देश और कश्मीर का ये हाल कर रखा है… कांग्रेस आज कश्मीर को स्वायत्तता देगी, कल असम को, परसों पश्चिम बंगाल को, फ़िर मणिपुर और केरल को…? इज़राइल तो बहुत दूर है… हमारे पड़ोस में श्रीलंका जैसे छोटे से देश ने तमिल आंदोलन को कुचलकर दिखा दिया कि यदि नेताओं में "रीढ़ की हड्डी" में जान हो, जनता में देशभक्ति की भावना हो और मीडिया सकारात्मक रुप से देशहित में सोचे तो बहुत कुछ किया जा सकता है…
किन्तु यहाँ तो मु.मं.उमर एकता यात्रा को रोकने की धमकी देते हैं, किन्तु यात्रा विरोधी प्रदर्शन को नहीं ! जो शक्ति वो एकता यात्रा को रोकने में लगा रहे हैं काश उसका एक अंश भी तिरंगा जलाने वालों को रोकने में लगाया होता तो आतंकियों का मनोबल इतना न बढता और तिरंगा या एकता यात्रा विवाद का विषय नहीं बनता! हमारे विषद का विषय यही है !!   
विविध विषयों पर मेरे अन्य लेख, भारतीय वायु सेना के उप प्रमुख अवम(से.नि.)विश्व मोहन त्तिवारी व् अन्य मित्रों के लेख आप देख तथा उनपर टिपण्णी कर सकते हैं 
-- तिलक संपादक युग दर्पण  09911111611
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पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण

Monday 17 January 2011

काफ़ी कैट (मार्जार काफ़ी) नखरों की‌ हद्द नहीं------------------------विश्व मोहन तिवारी, पूर्व एयर वाइस मार्शल

पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण


जब मैने पढ़ा कि दिल्ली में ही एक विदेशी कम्पनी की काफ़ी की दूकान में एक प्याला काफ़ी‌ दो या ढाई सौ रुपये का मिलता है वह कीमत की ऊँचाई आज के विदेशी भक्त्तों की श्रद्धा के बावजूद समझ में नहीं आ रही थी।


'डाउन टु अर्थ' में पढ़ा कि एक जंगली मार्जार ( सिवैट – जंगली बिल्ली) जब काफ़ी के गूदेदार फ़ल खाकर उसके बीज अपने गू (मल) में त्याग देता या देती है, तब जो उस बीज की‌ काफ़ी बनती‌ है, उसकी महिमा अपरम्पार है। यह माना जाता (प्रचारित किया जाता है) है कि एशियाई ताड़ -मार्जार की अँतड़ियों के आवास में से होकर जब वह बीज निकलता है तब उसमें दिव्य गंध का वास हो जाता है, यद्यपि इस प्रक्रिया का कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। ऐसा माना जाता है कि मार्जार की अँतड़ियों में आवासीय एन्ज़ाइम इसके कड़ुएपन को कम करते हैं और सुगंध को बढ़ाते हैं।


भारत में‌ इस तरह की काफ़ी के अकेले उत्पादक (?) सत्तर वर्षीय टी एस गणेश कहते हैं कि उऩ्हें इस काफ़ी और सामान्य दक्षिण भारतीय काफ़ी के स्वाद या सुगंध में कोई अंतर नहीं मालूम होता।


यह काफ़ी तथा कथित 'वैश्विक ग्राम' के खुले बाजार में ३०, ००० रुपए प्रति किग्रा. बिकती‌है !! विश्व् मे ( दक्षिण एशिया में) इसका कुल उत्पादन मात्र २०० किग्रा. प्रतिवर्ष है। और मजे की‌ बात यह है कि यद्यपि विश्व में इसके बीज का उत्पादन ( जंगल में खोजकर बटोरना) बहुत कम होता है, विदेशी‌ कम्पनियां टी एस गणेश के 'मार्जार काफ़ी' बीजों को खरीदने के लिये तैयार नहीं हैं, यद्यपि उऩ्होंने उन बीजों की प्रशंसा ही की है - यह हमारे विदेशी भक्ति का प्रतिदान है। यदि उऩ्हें यहां के बीजों की गुणवत्ता पर संदेह है तब क्या उनके सुगंध विशेषज्ञ इसे परख नहीं सकते !


टी एस गणेश तो उस दिव्य काफ़ी के बीज लगभग सामान्य काफ़ी बीजों की तरह ही मात्र २५० रु. किलो ही बेचते हैं, क्योंकि भारत में इसकी माँग नहीं‌ है। किन्तु हमारी विदेश भक्ति देखिये कि यद्यपि विदेशी कम्पनी हम से खरीदने को तैयार नहीं हैं, हम दो या ढाई सौ रु. में इस विदेशी काफ़ी का एक प्याला पीने को तैयार हैं, हमारा आखिर 'काफ़ी कैट' (कापी कैट) होना तो एक महान गुण है ही।

Saturday 1 January 2011

युगदर्पण मित्र मंडल Yug Darpan सभी भाषाओँ में

युगदर्पण मित्र मंडल Yug Darpan 
युगदर्पण की योजना, हिंदी ही नहीं सभी भाषाओँ में
समर्थ सशक्त व समृद्ध भारत हेतु ..राष्ट्र हित सर्वोपरि -
यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहाँ से
कुछ बात है कि अब तक बाकि निशान हमारा !
यह राष्ट्र हमारी पहचान है, इसके बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं !
पतंग आकाश में जो तन के उड़ा करती है,
जड़ों से कट के वो पैरों में गिरा करती है
..वर्तमान भ्रष्ट, विकृत पत्रकारिता का ही सार्थक विकल्प देने का प्रयास विगत 10 वर्ष से चल रहा है!
चैत्र नव रात्र (4 अप्रेल) युग दर्पण का स्थापना दिवस है! देश के सभी राज्यों में शाखा विस्तार करना है !
-अभी युगदर्पण को शीघ्र ही सभी भाषाओँ में करना है, क्या आप इससे जुड़ना चाहते हैं?
एक सार्थक पहल मीडिया के क्षेत्र में राष्ट्रीय साप्ताहिक युग दर्पण (भारत सरकार के सूचना प्रसारण के समाचार पत्र पंजीयक द्वारा पंजी RNI DelHin 11786/2001) 10 वर्ष पूर्व स्वस्थ समाचारों के प्रतिनिधि बना युगदर्पण अब उनके प्रतीक के रूपमें पहचाना जाता है. विविधतापूर्ण किन्तु सप्तगुणयुक्त- सार्थक,सटीक, स्वस्थ,सोम्य, सुघड़,सुस्पष्ट, व सुरुचिपूर्ण पत्रकारिता का एक ही नाम युगदर्पण. पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है (हरयाणा/पंजाब में सूचीबद्ध)- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... युगदर्पण मित्र मंडल Yug Darpan

panjabi...ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਮਿਤ੍ਰ ਮਂਡਲ Yug Darpan ਸਭੀ ਭਾਸ਼ਾਓਂ ਮੇਂ

ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਮਿਤ੍ਰ ਮਂਡਲ Yug Darpan 
ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਕੀ ਯੋਜਨਾ, ਹਿਂਦੀ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਭੀ ਭਾਸ਼ਾਓਂ ਮੇਂ
ਸਮਰ੍ਥ ਸਸ਼ਕ੍ਤ ਵ ਸਮਰਦ੍ਧ ਭਾਰਤ ਹੇਤੁ ..ਰਾਸ਼੍ਟ੍ਰ ਹਿਤ ਸਰ੍ਵੋਪਰਿ -
ਯੂਨਾਨ ਮਿਸ੍ਰ ਰੋਮਾ ਸਬ ਮਿਟ ਗਏ ਜਹਾਂ ਸੇ
ਕੁਛ ਬਾਤ ਹੈ ਕਿ ਅਬ ਤਕ ਬਾਕਿ ਨਿਸ਼ਾਨ ਹਮਾਰਾ !
ਯਹ ਰਾਸ਼੍ਟ੍ਰ ਹਮਾਰੀ ਪਹਚਾਨ ਹੈ, ਇਸਕੇ ਬਿਨਾ ਹਮਾਰਾ ਕੋਈ ਅਸ੍ਤਿਤ੍ਵ ਨਹੀਂ !
ਪਤਂਗ ਆਕਾਸ਼ ਮੇਂ ਜੋ ਤਨ ਕੇ ਉਡ਼ਾ ਕਰਤੀ ਹੈ,
ਜਡ਼ੋਂ ਸੇ ਕਟ ਕੇ ਵੋ ਪੈਰੋਂ ਮੇਂ ਗਿਰਾ ਕਰਤੀ ਹੈ
..ਵਰ੍ਤਮਾਨ ਭ੍ਰਸ਼੍ਟ, ਵਿਕਰਤ ਪਤ੍ਰਕਾਰਿਤਾ ਕਾ ਹੀ ਸਾਰ੍ਥਕ ਵਿਕਲ੍ਪ ਦੇਨੇ ਕਾ ਪ੍ਰਯਾਸ ਵਿਗਤ 10 ਵਰ੍ਸ਼ ਸੇ ਚਲ ਰਹਾ ਹੈ!
ਚੈਤ੍ਰ ਨਵ ਰਾਤ੍ਰ (4 ਅਪ੍ਰੇਲ) ਯੁਗ ਦਰ੍ਪਣ ਕਾ ਸ੍ਥਾਪਨਾ ਦਿਵਸ ਹੈ! ਦੇਸ਼ ਕੇ ਸਭੀ ਰਾਜ੍ਯੋਂ ਮੇਂ ਸ਼ਾਖਾ ਵਿਸ੍ਤਾਰ ਕਰਨਾ ਹੈ !
-ਅਭੀ ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਕੋ ਸ਼ੀਘ੍ਰ ਹੀ ਸਭੀ ਭਾਸ਼ਾਓਂ ਮੇਂ ਕਰਨਾ ਹੈ, ਕ੍ਯਾ ਆਪ ਇਸਸੇ ਜੁਡ਼ਨਾ ਚਾਹਤੇ ਹੈਂ?
ਏਕ ਸਾਰ੍ਥਕ ਪਹਲ ਮੀਡਿਯਾ ਕੇ ਕ੍ਸ਼ੇਤ੍ਰ ਮੇਂ ਰਾਸ਼੍ਟ੍ਰੀਯ ਸਾਪ੍ਤਾਹਿਕ ਯੁਗ ਦਰ੍ਪਣ (ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਕੇ ਸੂਚਨਾ ਪ੍ਰਸਾਰਣ ਕੇ ਸਮਾਚਾਰ ਪਤ੍ਰ ਪਂਜੀਯਕ ਦ੍ਵਾਰਾ ਪਂਜੀ RNI DelHin 11786/2001) 10 ਵਰ੍ਸ਼ ਪੂਰ੍ਵ ਸ੍ਵਸ੍ਥ ਸਮਾਚਾਰੋਂ ਕੇ ਪ੍ਰਤਿਨਿਧਿ ਬਨਾ ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਅਬ ਉਨਕੇ ਪ੍ਰਤੀਕ ਕੇ ਰੂਪਮੇਂ ਪਹਚਾਨਾ ਜਾਤਾ ਹੈ. ਵਿਵਿਧਤਾਪੂਰ੍ਣ ਕਿਨ੍ਤੁ ਸਪ੍ਤਗੁਣਯੁਕ੍ਤ- ਸਾਰ੍ਥਕ,ਸਟੀਕ, ਸ੍ਵਸ੍ਥ,ਸੋਮ੍ਯ, ਸੁਘਡ਼,ਸੁਸ੍ਪਸ਼੍ਟ, ਵ ਸੁਰੁਚਿਪੂਰ੍ਣ ਪਤ੍ਰਕਾਰਿਤਾ ਕਾ ਏਕ ਹੀ ਨਾਮ ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ. ਪਤ੍ਰਕਾਰਿਤਾ ਵ੍ਯਵਸਾਯ ਨਹੀਂ ਏਕ ਮਿਸ਼ਨ ਹੈ (ਹਰਯਾਣਾ/ਪਂਜਾਬ ਮੇਂ ਸੂਚੀਬਦ੍ਧ)- ਤਿਲਕ ਸਂਪਾਦਕ ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਮਿਤ੍ਰ ਮਂਡਲ Yug Darpan

Guj...યુગદર્પણ મિત્ર મંડલ Yug Darpan સભી ભાષાઓઁ મેં

યુગદર્પણ મિત્ર મંડલ Yug Darpan 
યુગદર્પણ કી યોજના, હિંદી હી નહીં સભી ભાષાઓઁ મેં
સમર્થ સશક્ત વ સમૃદ્ધ ભારત હેતુ ..રાષ્ટ્ર હિત સર્વોપરિ -
યૂનાન મિસ્ર રોમા સબ મિટ ગએ જહાઁ સે
કુછ બાત હૈ કિ અબ તક બાકિ નિશાન હમારા !
યહ રાષ્ટ્ર હમારી પહચાન હૈ, ઇસકે બિના હમારા કોઈ અસ્તિત્વ નહીં !
પતંગ આકાશ મેં જો તન કે ઉડ઼ા કરતી હૈ,
જડ઼ોં સે કટ કે વો પૈરોં મેં ગિરા કરતી હૈ
..વર્તમાન ભ્રષ્ટ, વિકૃત પત્રકારિતા કા હી સાર્થક વિકલ્પ દેને કા પ્રયાસ વિગત 10 વર્ષ સે ચલ રહા હૈ!
ચૈત્ર નવ રાત્ર (4 અપ્રેલ) યુગ દર્પણ કા સ્થાપના દિવસ હૈ! દેશ કે સભી રાજ્યોં મેં શાખા વિસ્તાર કરના હૈ !
-અભી યુગદર્પણ કો શીઘ્ર હી સભી ભાષાઓઁ મેં કરના હૈ, ક્યા આપ ઇસસે જુડ઼ના ચાહતે હૈં?
એક સાર્થક પહલ મીડિયા કે ક્ષેત્ર મેં રાષ્ટ્રીય સાપ્તાહિક યુગ દર્પણ (ભારત સરકાર કે સૂચના પ્રસારણ કે સમાચાર પત્ર પંજીયક દ્વારા પંજી RNI DelHin 11786/2001) 10 વર્ષ પૂર્વ સ્વસ્થ સમાચારોં કે પ્રતિનિધિ બના યુગદર્પણ અબ ઉનકે પ્રતીક કે રૂપમેં પહચાના જાતા હૈ. વિવિધતાપૂર્ણ કિન્તુ સપ્તગુણયુક્ત- સાર્થક,સટીક, સ્વસ્થ,સોમ્ય, સુઘડ઼,સુસ્પષ્ટ, વ સુરુચિપૂર્ણ પત્રકારિતા કા એક હી નામ યુગદર્પણ. પત્રકારિતા વ્યવસાય નહીં એક મિશન હૈ (હરયાણા/પંજાબ મેં સૂચીબદ્ધ)- તિલક સંપાદક યુગદર્પણ 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... યુગદર્પણ મિત્ર મંડલ Yug Darpan
Bangla...আ.সূচনা,...যুগদর্পণ মিত্র মংডল Yug Darpan সভী ভাষাওঁ মেং
যুগ দর্পণ হিংদী রাষ্ট্রীয সমাচারপত্র
সমর্থ সশক্ত ব সমৃদ্ধ ভারত হেতু ..রাষ্ট্র হিত সর্বোপরি -
যূনান মিস্র রোমা সব মিট গএ জহাঁ সে
কুছ বাত হৈ কি অব তক বাকি নিশান হমারা !
যহ রাষ্ট্র হমারী পহচান হৈ, ইসকে বিনা হমারা কোঈ অস্তিত্ব নহীং !
পতংগ আকাশ মেং জো তন কে উড়া করতী হৈ,
জড়োং সে কট কে বো পৈরোং মেং গিরা করতী হৈ
..বর্তমান ভ্রষ্ট, বিকৃত পত্রকারিতা কা হী সার্থক বিকল্প দেনে কা প্রযাস বিগত 10 বর্ষ সে চল রহা হৈ!
চৈত্র নব রাত্র (4 অপ্রেল) যুগ্দার্পণ কা স্থাপনা দিবস হৈ! দেশ কে সভী রাজ্যোং মেং শাখা বিস্তার করনা হৈ !
-অভী যুগদর্পণ কো শীঘ্র হী সভী ভাষাওঁ মেং করনা হৈ, ক্যা আপ ইসসে জুড়না চাহতে হৈং?
এক সার্থক পহল মীডিযা কে ক্ষেত্র মেং রাষ্ট্রীয সাপ্তাহিক যুগ দর্পণ (ভারত সরকার কে সূচনা প্রসারণ কে সমাচার পত্র পংজীযক দ্বারা পংজী RNI DelHin 11786/2001) 10 বর্ষ পূর্ব স্বস্থ সমাচারোং কে প্রতিনিধি বনা যুগদর্পণ অব উনকে প্রতীক কে রূপমেং পহচানা জাতা হৈ. বিবিধতাপূর্ণ কিন্তু সপ্তগুণযুক্ত- সার্থক,সটীক, স্বস্থ,সোম্য, সুঘড়,সুস্পষ্ট, ব সুরুচিপূর্ণ পত্রকারিতা কা এক হী নাম যুগদর্পণ. পত্রকারিতা ব্যবসায নহীং এক মিশন হৈ (হরযাণা/পংজাব মেং সূচীবদ্ধ)- তিলক সংপাদক যুগদর্পণ 09911111611,
comm on orkut / grp on face book ... যুগদর্পণ মিত্র মংডল Yug Darpa
Tamil...ஆ.ஸூசநா,...யுகதர்பண மித்ர மஂடல Yug Darpan ஸபீ பாஷாஓஂ மேஂ
யுக தர்பண ஹிஂதீ ராஷ்ட்ரீய ஸமாசாரபத்ர
ஸமர்த ஸஸக்த வ ஸமர்த்த பாரத ஹேது ..ராஷ்ட்ர ஹித ஸர்வோபரி -
யூநாந மிஸ்ர ரோமா ஸப மிட கஏ ஜஹாஂ ஸே
குச பாத ஹை கி அப தக பாகி நிஸாந ஹமாரா !
யஹ ராஷ்ட்ர ஹமாரீ பஹசாந ஹை, இஸகே பிநா ஹமாரா கோஈ அஸ்தித்வ நஹீஂ !
பதஂக ஆகாஸ மேஂ ஜோ தந கே உடா கரதீ ஹை,
ஜடோஂ ஸே கட கே வோ பைரோஂ மேஂ கிரா கரதீ ஹை
..வர்தமாந ப்ரஷ்ட, விகர்த பத்ரகாரிதா கா ஹீ ஸார்தக விகல்ப தேநே கா ப்ரயாஸ விகத 10 வர்ஷ ஸே சல ரஹா ஹை!
சைத்ர நவ ராத்ர (4 அப்ரேல) யுக்தார்பண கா ஸ்தாபநா திவஸ ஹை! தேஸ கே ஸபீ ராஜ்யோஂ மேஂ ஸாகா விஸ்தார கரநா ஹை !
-அபீ யுகதர்பண கோ ஸீக்ர ஹீ ஸபீ பாஷாஓஂ மேஂ கரநா ஹை, க்யா ஆப இஸஸே ஜுடநா சாஹதே ஹைஂ?
ஏக ஸார்தக பஹல மீடியா கே க்ஷேத்ர மேஂ ராஷ்ட்ரீய ஸாப்தாஹிக யுக தர்பண (பாரத ஸரகார கே ஸூசநா ப்ரஸாரண கே ஸமாசார பத்ர பஂஜீயக த்வாரா பஂஜீ RNI DelHin 11786/2001) 10 வர்ஷ பூர்வ ஸ்வஸ்த ஸமாசாரோஂ கே ப்ரதிநிதி பநா யுகதர்பண அப உநகே ப்ரதீக கே ரூபமேஂ பஹசாநா ஜாதா ஹை. விவிததாபூர்ண கிந்து ஸப்தகுணயுக்த- ஸார்தக,ஸடீக, ஸ்வஸ்த,ஸோம்ய, ஸுகட,ஸுஸ்பஷ்ட, வ ஸுருசிபூர்ண பத்ரகாரிதா கா ஏக ஹீ நாம யுகதர்பண. பத்ரகாரிதா வ்யவஸாய நஹீஂ ஏக மிஸந ஹை (ஹரயாணா/பஂஜாப மேஂ ஸூசீபத்த)- திலக ஸஂபாதக யுகதர்பண 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... யுகதர்பண மித்ர மஂடல Yug Darpan
Telugu...ఆ.సూచనా,...యుగదర్పణ మిత్ర మండల Yug Darpan సభీ భాషాఓఁ మేం
యుగ దర్పణ హిందీ రాష్ట్రీయ సమాచారపత్ర
సమర్థ సశక్త వ సమృద్ధ భారత హేతు ..రాష్ట్ర హిత సర్వోపరి -
యూనాన మిస్ర రోమా సబ మిట గఏ జహాఁ సే
కుఛ బాత హై కి అబ తక బాకి నిశాన హమారా !
యహ రాష్ట్ర హమారీ పహచాన హై, ఇసకే బినా హమారా కోఈ అస్తిత్వ నహీం !
పతంగ ఆకాశ మేం జో తన కే ఉడా కరతీ హై,
జడోం సే కట కే వో పైరోం మేం గిరా కరతీ హై
..వర్తమాన భ్రష్ట, వికృత పత్రకారితా కా హీ సార్థక వికల్ప దేనే కా ప్రయాస విగత 10 వర్ష సే చల రహా హై!
చైత్ర నవ రాత్ర (4 అప్రేల) యుగ్దార్పణ కా స్థాపనా దివస హై! దేశ కే సభీ రాజ్యోం మేం శాఖా విస్తార కరనా హై !
-అభీ యుగదర్పణ కో శీఘ్ర హీ సభీ భాషాఓఁ మేం కరనా హై, క్యా ఆప ఇససే జుడనా చాహతే హైం?
ఏక సార్థక పహల మీడియా కే క్షేత్ర మేం రాష్ట్రీయ సాప్తాహిక యుగ దర్పణ (భారత సరకార కే సూచనా ప్రసారణ కే సమాచార పత్ర పంజీయక ద్వారా పంజీ RNI DelHin 11786/2001) 10 వర్ష పూర్వ స్వస్థ సమాచారోం కే ప్రతినిధి బనా యుగదర్పణ అబ ఉనకే ప్రతీక కే రూపమేం పహచానా జాతా హై. వివిధతాపూర్ణ కిన్తు సప్తగుణయుక్త- సార్థక,సటీక, స్వస్థ,సోమ్య, సుఘడ,సుస్పష్ట, వ సురుచిపూర్ణ పత్రకారితా కా ఏక హీ నామ యుగదర్పణ. పత్రకారితా వ్యవసాయ నహీం ఏక మిశన హై (హరయాణా/పంజాబ మేం సూచీబద్ధ)- తిలక సంపాదక యుగదర్పణ 09911111611,
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Malm...യുഗദര്പണ മിത്ര മംഡല Yug Darpan സഭീ ഭാഷാഓം മേം

യുഗദര്പണ മിത്ര മംഡല Yug Darpan 
യുഗദര്പണ കീ യോജനാ, ഹിംദീ ഹീ നഹീം സഭീ ഭാഷാഓം മേം
സമര്ഥ സശക്ത വ സമൃദ്ധ ഭാരത ഹേതു ..രാഷ്ട്ര ഹിത സര്വോപരി -
യൂനാന മിസ്ര രോമാ സബ മിട ഗഏ ജഹാം സേ
കുഛ ബാത ഹൈ കി അബ തക ബാകി നിശാന ഹമാരാ !
യഹ രാഷ്ട്ര ഹമാരീ പഹചാന ഹൈ, ഇസകേ ബിനാ ഹമാരാ കോഈ അസ്തിത്വ നഹീം !
പതംഗ ആകാശ മേം ജോ തന കേ ഉഡാ കരതീ ഹൈ,
ജഡോം സേ കട കേ വോ പൈരോം മേം ഗിരാ കരതീ ഹൈ
..വര്തമാന ഭ്രഷ്ട, വികൃത പത്രകാരിതാ കാ ഹീ സാര്ഥക വികല്പ ദേനേ കാ പ്രയാസ വിഗത 10 വര്ഷ സേ ചല രഹാ ഹൈ!
ചൈത്ര നവ രാത്ര (4 അപ്രേല) യുഗ ദര്പണ കാ സ്ഥാപനാ ദിവസ ഹൈ! ദേശ കേ സഭീ രാജ്യോം മേം ശാഖാ വിസ്താര കരനാ ഹൈ !
-അഭീ യുഗദര്പണ കോ ശീഘ്ര ഹീ സഭീ ഭാഷാഓം മേം കരനാ ഹൈ, ക്യാ ആപ ഇസസേ ജുഡനാ ചാഹതേ ഹൈം?
ഏക സാര്ഥക പഹല മീഡിയാ കേ ക്ഷേത്ര മേം രാഷ്ട്രീയ സാപ്താഹിക യുഗ ദര്പണ (ഭാരത സരകാര കേ സൂചനാ പ്രസാരണ കേ സമാചാര പത്ര പംജീയക ദ്വാരാ പംജീ RNI DelHin 11786/2001) 10 വര്ഷ പൂര്വ സ്വസ്ഥ സമാചാരോം കേ പ്രതിനിധി ബനാ യുഗദര്പണ അബ ഉനകേ പ്രതീക കേ രൂപമേം പഹചാനാ ജാതാ ഹൈ. വിവിധതാപൂര്ണ കിന്തു സപ്തഗുണയുക്ത- സാര്ഥക,സടീക, സ്വസ്ഥ,സോമ്യ, സുഘഡ,സുസ്പഷ്ട, വ സുരുചിപൂര്ണ പത്രകാരിതാ കാ ഏക ഹീ നാമ യുഗദര്പണ. പത്രകാരിതാ വ്യവസായ നഹീം ഏക മിശന ഹൈ (ഹരയാണാ/പംജാബ മേം സൂചീബദ്ധ)- തിലക സംപാദക യുഗദര്പണ 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... യുഗദര്പണ മിത്ര മംഡല Yug Darpan

Kann....ಯುಗದರ್ಪಣ ಮಿತ್ರ ಮಂಡಲ Yug Darpan ಸಭೀ ಭಾಷಾಓಂ ಮೇಂ

ಯುಗದರ್ಪಣ ಮಿತ್ರ ಮಂಡಲ Yug Darpan 
ಯುಗದರ್ಪಣ ಕೀ ಯೋಜನಾ, ಹಿಂದೀ ಹೀ ನಹೀಂ ಸಭೀ ಭಾಷಾಓಂ ಮೇಂ
ಸಮರ್ಥ ಸಶಕ್ತ ವ ಸಮೃದ್ಧ ಭಾರತ ಹೇತು ..ರಾಷ್ಟ್ರ ಹಿತ ಸರ್ವೋಪರಿ -
ಯೂನಾನ ಮಿಸ್ರ ರೋಮಾ ಸಬ ಮಿಟ ಗಏ ಜಹಾಂ ಸೇ
ಕುಛ ಬಾತ ಹೈ ಕಿ ಅಬ ತಕ ಬಾಕಿ ನಿಶಾನ ಹಮಾರಾ !
ಯಹ ರಾಷ್ಟ್ರ ಹಮಾರೀ ಪಹಚಾನ ಹೈ, ಇಸಕೇ ಬಿನಾ ಹಮಾರಾ ಕೋಈ ಅಸ್ತಿತ್ವ ನಹೀಂ !
ಪತಂಗ ಆಕಾಶ ಮೇಂ ಜೋ ತನ ಕೇ ಉಡಾ ಕರತೀ ಹೈ,
ಜಡೋಂ ಸೇ ಕಟ ಕೇ ವೋ ಪೈರೋಂ ಮೇಂ ಗಿರಾ ಕರತೀ ಹೈ
..ವರ್ತಮಾನ ಭ್ರಷ್ಟ, ವಿಕೃತ ಪತ್ರಕಾರಿತಾ ಕಾ ಹೀ ಸಾರ್ಥಕ ವಿಕಲ್ಪ ದೇನೇ ಕಾ ಪ್ರಯಾಸ ವಿಗತ 10 ವರ್ಷ ಸೇ ಚಲ ರಹಾ ಹೈ!
ಚೈತ್ರ ನವ ರಾತ್ರ (4 ಅಪ್ರೇಲ) ಯುಗ ದರ್ಪಣ ಕಾ ಸ್ಥಾಪನಾ ದಿವಸ ಹೈ! ದೇಶ ಕೇ ಸಭೀ ರಾಜ್ಯೋಂ ಮೇಂ ಶಾಖಾ ವಿಸ್ತಾರ ಕರನಾ ಹೈ !
-ಅಭೀ ಯುಗದರ್ಪಣ ಕೋ ಶೀಘ್ರ ಹೀ ಸಭೀ ಭಾಷಾಓಂ ಮೇಂ ಕರನಾ ಹೈ, ಕ್ಯಾ ಆಪ ಇಸಸೇ ಜುಡನಾ ಚಾಹತೇ ಹೈಂ?
ಏಕ ಸಾರ್ಥಕ ಪಹಲ ಮೀಡಿಯಾ ಕೇ ಕ್ಷೇತ್ರ ಮೇಂ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಸಾಪ್ತಾಹಿಕ ಯುಗ ದರ್ಪಣ (ಭಾರತ ಸರಕಾರ ಕೇ ಸೂಚನಾ ಪ್ರಸಾರಣ ಕೇ ಸಮಾಚಾರ ಪತ್ರ ಪಂಜೀಯಕ ದ್ವಾರಾ ಪಂಜೀ RNI DelHin 11786/2001) 10 ವರ್ಷ ಪೂರ್ವ ಸ್ವಸ್ಥ ಸಮಾಚಾರೋಂ ಕೇ ಪ್ರತಿನಿಧಿ ಬನಾ ಯುಗದರ್ಪಣ ಅಬ ಉನಕೇ ಪ್ರತೀಕ ಕೇ ರೂಪಮೇಂ ಪಹಚಾನಾ ಜಾತಾ ಹೈ. ವಿವಿಧತಾಪೂರ್ಣ ಕಿನ್ತು ಸಪ್ತಗುಣಯುಕ್ತ- ಸಾರ್ಥಕ,ಸಟೀಕ, ಸ್ವಸ್ಥ,ಸೋಮ್ಯ, ಸುಘಡ,ಸುಸ್ಪಷ್ಟ, ವ ಸುರುಚಿಪೂರ್ಣ ಪತ್ರಕಾರಿತಾ ಕಾ ಏಕ ಹೀ ನಾಮ ಯುಗದರ್ಪಣ. ಪತ್ರಕಾರಿತಾ ವ್ಯವಸಾಯ ನಹೀಂ ಏಕ ಮಿಶನ ಹೈ (ಹರಯಾಣಾ/ಪಂಜಾಬ ಮೇಂ ಸೂಚೀಬದ್ಧ)- ತಿಲಕ ಸಂಪಾದಕ ಯುಗದರ್ಪಣ 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... ಯುಗದರ್ಪಣ ಮಿತ್ರ ಮಂಡಲ Yug Darpan
A +ve substitute to present -ve media emerged as a mission for last 10 yrs. all subjects in refined, compact form- Yug Darpan National Hindi weeklyfrom Delhi. Empanelled with Haryana Govt, & Punjab Govt, Fast expanding to other states, likely to convert to a Daily, & a TV channel, with your support.
Those interested may contact 09911111611, or युगदर्पण मित्र मंडल YugDarpan Fans Club (grp on FB, comm on orkut)

Wednesday 29 December 2010

अंग्रेजी का नव वर्ष, भले ही मनाएं

अंग्रेजी का नव वर्ष, भले ही मनाएं

 "अंग्रेजी का नव वर्ष, भले ही मनाएं; उमंग उत्साह, चाहे जितना दिखाएँ; चैत्र के नव रात्रे, जब जब भी आयें; घर घर सजाएँ, उमंग के दीपक जलाएं; आनंद से, ब्रह्माण्ड तक को महकाएं; विश्व में, भारत का गौरव बढाएं " अंग्रेजी का नव वर्ष 2011, व वर्ष के 365 दिन ही मंगलमय हों, भारत भ्रष्टाचार व आतंकवाद से मुक्त हो, हम अपने आदर्श व संस्कृति को पुनर्प्रतिष्ठित कर सकें ! इन्ही शुभकामनाओं के साथ, भवदीय.. तिलक संपादक युगदर्पण राष्ट्रीय साप्ताहिक हिंदी समाचार-पत्र. 09911111611. 

Bangla... 

অংগ্রেজী কা নব বর্ষ, ভলে হী মনাএং 

 "অংগ্রেজী কা নব বর্ষ, ভলে হী মনাএং; উমংগ উত্সাহ, চাহে জিতনা দিখাএঁ; চৈত্র কে নব রাত্রে, জব জব ভী আযেং; ঘর ঘর সজাএঁ, উমংগ কে দীপক জলাএং; আনংদ সে, ব্রহ্মাণ্ড তক কো মহকাএং; বিশ্ব মেং, ভারত কা গৌরব বঢাএং " অংগ্রেজী কা নব বর্ষ 2011, ব বর্ষ কে 365 দিন হী মংগলময হোং, ভারত ভ্রষ্টাচার ব আতংকবাদ সে মুক্ত হো, হম অপনে আদর্শ ব সংস্কৃতি কো পুনর্প্রতিষ্ঠিত কর সকেং ! ইন্হী শুভকামনাওং কে সাথ, ভবদীয.. তিলক সংপাদক যুগদর্পণ রাষ্ট্রীয সাপ্তাহিক হিংদী সমাচার-পত্র. 09911111611. 
Tamil... அஂக்ரேஜீ கா நவ வர்ஷ, பலே ஹீ மநாஏஂ
 "அஂக்ரேஜீ கா நவ வர்ஷ, பலே ஹீ மநாஏஂ; உமஂக உத்ஸாஹ, சாஹே ஜிதநா திகாஏஂ; சைத்ர கே நவ ராத்ரே, ஜப ஜப பீ ஆயேஂ; கர கர ஸஜாஏஂ, உமஂக கே தீபக ஜலாஏஂ; ஆநஂத ஸே, ப்ரஹ்மாண்ட தக கோ மஹகாஏஂ; விஸ்வ மேஂ, பாரத கா கௌரவ படாஏஂ " அஂக்ரேஜீ கா நவ வர்ஷ 2011, வ வர்ஷ கே 365 திந ஹீ மஂகலமய ஹோஂ, பாரத ப்ரஷ்டாசார வ ஆதஂகவாத ஸே முக்த ஹோ, ஹம அபநே ஆதர்ஸ வ ஸஂஸ்கர்தி கோ புநர்ப்ரதிஷ்டித கர ஸகேஂ ! இந்ஹீ ஸுபகாமநாஓஂ கே ஸாத, பவதீய.. திலக ஸஂபாதக யுகதர்பண ராஷ்ட்ரீய ஸாப்தாஹிக ஹிஂதீ ஸமாசார-பத்ர. 09911111611.
"One may celebrate even English New Year, with exaltation and excitement; Chaitra Nav Ratre whenever it comes; decorate house, enlighten with lamps of exaltation; enjoy, even enrich the universe with Happiness; Increase the India's pride in the world, English New Year 2011 and all the 365 days of the year are auspicious, May India be free of corruption and terrorism, we can ReEstablish Ideals, values and culture ! with these good wishes, Sincerely .. Tilak editor YugDarpan Hindi national weekly newspaper. 09,911,111,611.
"Angrezi ka nav varsh, bhale hi manayen; umang utsah, chahe jitna dikhayen; chaitr ke nav ratre, jab jab bhi ayen; ghar ghar sajayen, umang ke deepak jalayen; Anand se, brahmand tak ko mahkayen; Vishva mein, Bharat ka gaurav badayen." Angrezi ka nav varsh 2011, v varsh ke 365 din hi mangalmay hon, Bharat bhrashtachar v atankvad se mukt ho, ham apne adarsh v sanskrutiko punrpratishthit kar saken ! inhi shubhakamanaon ke sath, bhavdiya.. Tilak Sampadak Yug Darpan Rashtriya Saptahik Hindi Samachar-Patra. 09911111611.

पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण

Thursday 23 December 2010

मनमोहनी मुखौटा व इच्छाशक्ति

युग दर्पण सम्पादकीय
 मनमोहनी मुखौटा व इच्छाशक्ति
 विगत 3 वर्षों से 2 जी व अन्य घोटाले हुए पर आंख बंद रखने व बचाव करनेवाले प्र.मं. डॉ. मनमोहन सिंह ने शुचिता का मुखौटा लगा ही लिया व बुराड़ी में अपने भाषण से हमें आभास दिला दिया कि भ्रष्टाचार अभी भी एक मुद्दा है और मनमोहन सिंह सरकार उसे समाप्त करने की इच्छुक है। कांग्रेस महाधिवेशन में प्रधानमंत्री ने सिद्धांतों की राजनीति करते हुए केवल भ्रष्टाचार की शंका पर त्यागपत्र देने की परम्परा बताई, यह जानकार खुशी हुई। यह भी आवाज़ आइ, हम विपक्ष की तरह नहीं है कि किसी राज्य में घोटाले पर घोटाले हों और मुख्यमंत्री पद पर बने रहें। जेपीसी की मांग पर एकजुट विपक्ष में दरार डालने के लिए प्रधानमंत्री ने लोक लेखा समिति (पीएसी) के सामने प्रस्तुत होने का दांव खेला। उन्होंने कहा कि`मैं साफतौर पर कहना चाहता हूं कि मेरे पास कुछ भी छिपाने को नहीं है।  प्रधानमंत्री पद को किसी भी तरह के संदेह से परे होना चाहिए। इसलिए पुरानी परम्परा न होते हुए भी मैं लोलेसमिति (पीएसी) के सामने प्रस्तुत होने को तैयार हूं। इस मनमोहनी मुखौटे ने तो मनमोह लिया किन्तु अब इसके पीछे छिपे वास्तविक रूप को भी देखें।'
  माना कि यहां सीधे सीधे प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं। किसी ने भी यह नहीं कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह ने भ्रष्टाचार के कृत्य किए हैं। जेपीसी की मांग 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर है। प्रश्न सीधा है, क्या मनमोहन सिंह सरकार पूरी ईमानदारी से इस घोटाले की जांच करवाने को तैयार है या नहीं? संसद भारत की सर्वोच्च जनता की अदालत है। सांसद इसीलिए भेजे जाते हैं कि जनता की आवाज को संसद में उठा सकें। जब संसद के बहुमत सदस्य चाहते हैं कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच जेपीसी करे तो सरकार को इसमें क्या आपत्ति है? हम प्रधानमंत्री जी से क्षमा चाहेंगे। अपने भाषण में उन्होंने प्रधानमंत्री पद की निष्ठा की महत्ता बताई, किन्तु प्रश्न निष्ठा का नहीं, नियत का है, इच्छाशक्ति का है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई की बातें कहना और ऐसा करने की इच्छाशक्ति दिखाने में अन्तर होता है।और यहाँ यह अन्तर स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है। 
डॉ. मनमोहन सिंह के इस कथन से विपरीत कि मात्र संदेह होने पर उनके नेताओं ने पद त्याग दिया, वास्तविकता यह है कि ए. राजा से तब त्यागपत्र लिया गया जब इसके अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रह गया था। जब मीडिया और विपक्ष राजा के विरुद्ध कार्रवाई की मांग कर रहा था, तब कांग्रेसी देश को यह समझाने में लगे थे कि राजा को त्यागपत्र देने की आवश्यकता क्यों नहीं है? हम डॉ. सिंह को याद दिलाना चाहेंगे कि आपने स्वयं भी राजा का बचाव किया था। शशि थरूर के मामले में भी ऐसा ही हुआ था और जहां तक अशोक चव्हाण की बात है वह तो रंगे हाथ पकड़े गए थे। विवाद को ठंडे बस्ते में डालने के प्रयास में कांग्रेस ने चव्हाण को हटाया था, न कि देश का हित ध्यान में रखकर। 
  लोलेस (पीएसी) के पास सीमित अधिकार होते हैं। सामान्यत: कार्यपालिका से जुड़े सरकारी लोग संबंधित फाइलें ले जाकर समिति को यह बताते हैं कि उसमें क्या प्रक्रिया अपनाई गई किस-किस ने क्या लिखा, कैसे क्या निर्णय हुआ। यदि प्रधानमंत्री या उनके कार्यालय के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है और प्रधानमंत्री को भी संदेह से परे रखना चाहिए, तो हम याद करा दें आरोपी अपनी जांच का मंच स्वयं नहीं चुनता प्रधानमंत्री ने यह कहकर अपना मंच स्वयं चुना कि वह पीएसी के समक्ष प्रस्तुत होने को तैयार हैं। लोलेस केवल कैग की रिपोर्ट पर अनुच्छेदवार टिप्पणियां दे सकती है जबकि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन ही पूरी तरह से राजनीतिक मुद्दा है। क्या प्रधानमंत्री देश को यह बताना चाहेंगे कि एक दागी मंत्री को 3 वर्ष मंत्रालय में बने रहने की अनुमति कैसे मिल गई और आज तक उसके विरुद्ध कोई भी सीधी कार्रवाई नहीं हुई? सर्वो. न्याया. ने भी यह टिप्पणी की। । 
इच्छाशक्ति की बात करते है। यदि केंद्र सरकार अपनी चौतरफा आलोचना के बाद चेत गई है तो फिर देश को यह बताया जाए कि सर्वो. न्याया. की प्रतिकूल टिप्पणियों के बाद भी केंद्रीय सतर्पता आयुक्त के पद पर आसीन एक ऐसा व्यक्ति क्यों है जो न केवल पामोलीन आयात घोटाले में लिप्त होने का आरोपी है बल्कि अभियुक्त भी है? प्रश्न यह भी है कि मुसआ. (सीवीसी) के रूप में पीजे थॉमस की नियुक्ति सर्वो. न्याया. की ओर से निर्धारित प्रक्रिया के तहत क्यों नहीं की गई? एक दागदार छवि वाले व्यक्ति को मुसआ. बनाकर प्रधानमंत्री यह दावा कैसे कर सकते है कि वह भ्रष्टाचार के सख्त विरोधी है? यदि स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रहे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की निगरानी उच्चतम न्यायालय को करनी पड़ रही है तो क्या इसका एक अर्थ यह नहीं कि स्वयं शीर्ष अदालत भी यह मान रही है कि सीबीआई सरकार से प्रभावित हो सकती है? किसी राज्य में गलती का अनुसरण केंद्र कर रहा है तो गुज. व बिहार के विकास को आदर्श बनाया होता। । क्या सरकार ने स्वेच्छा से किसी भ्रष्ट तत्व के विरुद्ध कार्रवाई की, ऐसा कोई एक भी उदाहरण सरकार दे सकती है? 
बात इच्छाशक्ति की है। आज तक अफजल गुरु को फांसी क्यों नहीं दी गई? आतंकवाद को क्या यह सरकार रोकना चाहती है? लगता तो नहीं। वोट बैंक की चाह में देश की सुरक्षा से भी समझौता किया जा रहा है। इस सरकार का एक मात्र उद्देश्य किसी भी तरह से सत्ता में बने रहना है और जिससे उसके सत्ता कि नीव अस्थिर हो वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती तो गठबंधन के बहाने बन जाते हैं। 2जी स्पेक्ट्रम में भी यही प्राथमिकता है। सरकार अपने गठबंधन साथियों, विश्वस्त नौकरशाहों सहित सरकारी टुकड़ों पर पलते मीडिया के अपने उन पिट्ठुओं तथा मोटा चंदा देनेवाले उन उद्योगपतियों के पापों को ढकना चाहती है, जिनके साथ उसकी साठ गांठ हैं। । फिर भी प्रधानमंत्री कहते हैं कि मैं भ्रष्टाचार का सख्त विरोधी हूं। क्या सच मुच ?
डॉ. मनमोहन सिंह पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण

Wednesday 22 December 2010

संसद  से सड़क तक महासंग्राम सभाएं 
(भ्रष्टाचार के विरुद्ध) 2010 घोटाला वर्ष घोषित 
राजग  ऐसी सभाएं दोहराएगी देश के 12 स्थानों पर, जिला/ ग्राम स्तर धरनों से जनजागरण  
घोटाले की जाँच की संसद में राजग की मांग संप्रग ने ठुकराई, तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध राजग का महासंग्राम संसद से सड़क तक पहुँच गया ! जब PAC केवल सरकार के बही खाते में अंकित लेखा जोखा जांचने तक सीमित है, जाँच के नाम लीपा पोती कर छवि सुधारने की नियत से वहां जाने वाले प्र.मं. JPC से क्यों डरते हैं ?
इस वर्ष संप्रग के घोटालों के खुलासे ने सावन भादों की झड़ी लगा दी, यह घोटाला वर्ष के रूप से जाना जायेगा !
राजग के विभिन्न घटक व समर्थक अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में करेंगे जनजागरण 1) असम गौहाटी 9 जन.2) महाराष्ट्र मुंबई 16 जन .3) उड़ीसा भुवनेश्वर 17 जन. 4) राजस्थान जयपुर 19 जन.5) तमिलनाडु चैने 21 जन.6) उ.प्र. कानपुर 5 फर.7) हरयाणा रोहतक 6 फर. 8) म.प्र. भोपाल 9) गुज. अहमदाबाद 10) पंजाब लुधियाना की घोषणा अभी नहीं हुई !
10+1 प्रमुख घोटाले  1) 2 जी स्पेक्ट्रम  2) राष्ट्र मंडल खेल 3) आदर्श सोसायटी 4) सडा गला खाद्यान्न 5) चावल निर्यात 6) सार्वजानिक वितरण 7) मु.सतर्कता आयुक्त नियुक्ति 8) LIC Housing 9) सत्यम घोटाला 10) IPL कोच्ची घोटाला और अब प्याज घोटाला
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण

Saturday 18 December 2010

काकोरी कांड (क्या भारत आजाद है ?)

काकोरी कांड (क्या भारत आजाद है ?)

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों द्वारा चलाए जा रहे इस संग्राम
को गति देने के लिए धन की तत्काल व्यवस्था की आवश्यकता के कारण शाहजहाँपुर में हुई बैठक
के मध्य राजेन्द्रनाथ ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई।
इस योजना को कार्यरूप देने के लिए राजेन्द्रनाथ ने 9 अगस्त 1925 को
लखनऊ के काकोरी से छूटी 8 डाउन ट्रेन पर क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ और
ठाकुर रोशन सिंह व 19 अन्य सहयोगियों के सहयोग से धावा बोल दिया।
बाद में अंग्रेजी शासन ने सभी 23 क्रांतिकारियों पर काकोरी कांड के नाम पर
सशस्त्र युद्ध छेड़ने तथा खजाना लूटने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ,
रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा रोशन सिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई।
!!
आज है, 19 दिसंबर 1927 का वह दिन जब 'काकोरी कांड' के क्रांतिकारियों को फांसी दी गयी.
आइये उनका स्मरण करते हैं !! 

काकोरी जो लखनऊ जिले में एक छोटा सा गाँव हैं. स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने भेजी
बंदूके और धन रोकने हेतु अंग्रेजो की ट्रेन को यहाँ लूटा गया इसलिए इसका
नाम काकोरी ट्रेन डकैती पड़ा. सबसे पहले राजेंद्र लाहिड़ी को 17 दिसंबर सन
1927 को गोंडा जिले (उत्तर प्रदेश) में फांसी दी गयी. ट्रेन को लूटने में
कुल 10 क्रन्तिकारी साथी थे. किन्तु जब गिरफ्तारियां हुई तो 40 से भी अधिक
लोग पकडे गए. कुछ तो निर्दोष थे. अशफाक उल्ला और बख्शी लाल तुरंत नहीं
पकडे जा सके. अंग्रेजी शासन ने इस मुकदमे में 10 लाख रुपये से भी अधिक व्यय किया.
बनवारी लाल ने गद्दारी की और इकबालिया गवाह बन गया. इसने सभी
क्रांतिकारियों को पकड़वाने में अंग्रेजो की सहायता की. इसे भी 5 वर्ष की
सजा हुई. 18 महीने तक मुक़दमा चला पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र
लाहिड़ी और रौशन सिंह को फांसी की सजा हुई. राजेंद्र लाहिड़ी की 'अपील को
प्रीवी काउन्सिल' ने अस्वीकार कर दिया. शचींद्र नाथ सान्याल को कालेपानी की
सजा हुई. बाद में पकडे गए अभियुक्तों में अशफाक उल्ला को फैजाबाद जिले में 19 दिसंबर को
फांसी हुई और बख्शी लाल को कालेपानी की सजा हुई.
...अशफाक उल्ला बड़ी ख़ुशी के साथ कुरान - शरीफ का बस्ता कंधे से टांगे हुए हाजियों
( जो हज करने जाते हैं ) कि भांति 'लवेक' कहते और कलाम पढ़ते हुए फांसी के
तख्ते के पास गए. तख्ते को उन्होंने चूमा और सामने खड़ी भीड़ से कहा ( जो
उनकी फांसी को देखने आई हुई थी ) "मेरे हाथ इंसानी खून से कभी नहीं
रगें, मेरे ऊपर जो इलज़ाम लगाया गया वह गलत हैं. खुदा के यहाँ मेरा इन्साफ
होगा" ! इतना कह कर उन्होंने फांसी के फंदे को गले में डाला और खुदा का नाम
लेते हुए दुनिया से कूच कर गए.
उनके रिश्तेदार, चाहने वाले शव को शाहजहांपुर ले जाना चाहते थे.
बड़ी मिन्नत करने के बाद अनुमति मिली इनका
शव जब लखनऊ स्टेशन पर उतारा गया , तब कुछ लोगो को देखने का अवसर मिला.
चेहरे पर 10 घंटे के बाद भी बड़ी शांति और मधुरता थी बस आँखों के नीचे कुछ
पीलापन था. शेष चेहरा तो ऐसा सजीव था जैसे कि अभी अभी नींद आई
हैं, यह नींद अनंत थी. अशफाक कवि भी थे उन्होंने मरने से पहले शेर लिखा था
- "तंग आकर हम भी उनके जुल्म के बेदाद से !
चल दिए अदम ज़िन्दाने फैजाबाद से !!
ऐसे क्रांतिकारियों को मेरा कोटि कोटि प्रणाम !"
प्रश्न उठता है क्या भारत आजाद है? अंग्रेज़ी शासन व इस शासन में अंतर है ?
इसे देख दोनों प्रश्नों के उत्तर में कोई भी कहेगा - नहीं 

अंग्रेज़ी शासन में भी देश भक्तों व उनके समर्थकों तक को प्रताड़ित किया जाता था,
तथा शासन समर्थकों को राय साहब की पदवी व पुरुस्कार मिलते थे ?
आज भी शर्मनिरपेक्ष शासन में देश भक्तों को भगवा आतंक कह प्रताड़ित तथा
अफज़ल व आतंकियों को समर्थन, कश्मीर के अल कायदा के कुख्यात आतंकवादी
 
गुलाम मुहम्मद मीर को राष्ट्र की अति विशिष्ठ सेवाओं के लिए " पद्म श्री " सम्मान ?
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