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Sunday 23 January 2011

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जीवन

  • नेता जी सुभाष के जन्म दिवस पर  उन्हें शत शंत नमन ...!! व सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ! 
    1931 में कांग अध्यक्ष बने नेताजी, गाँधी का नेहरु प्रेम आड़े न आता; 
    तो देश का बंटवारा न होता, कश्मीर समस्या न होती, भ्रष्टाचार न होता, 
    देश समस्याओं का भंडार नहीं, विपुल सम्पदा का भंडार होता
    (स्विस में नहीं)
    -- तिलक संपादक युग दर्पण
  • नेताजी सुभाषचन्द्र बोस (बांग्ला: সুভাষ চন্দ্র বসু शुभाष चॉन्द्रो बोशु) (23 जनवरी 1897 - 18 अगस्त1945 विवादित) जो नेताजी नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय, अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द  का नारा, भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया हैं।
    1944 में अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर से बात करते हुए, महात्मा गाँधी ने नेताजी को देशभक्तों का देशभक्त  कहा था। नेताजी का योगदान और प्रभाव इतना बडा था कि कहा जाता हैं कि यदि उस समय नेताजी भारत में उपस्थित रहते, तो शायद भारत एक संघ राष्ट्र बना रहता और भारत का विभाजन न होता। स्वयं गाँधीजी ने इस बात को स्वीकार किया था। 
    [अनुक्रम 1 जन्म और कौटुंबिक जीवन, 2 स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश और कार्य, 3 कारावास, 4 यूरोप प्रवास5 हरीपुरा कांग्रेस का अध्यक्षप6 कांग्रेस के अध्यक्षपद से इस्तीफा7 फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना8 नजरकैद से पलायन9 नाजी जर्मनी में प्रवास एवं हिटलर से मुलाकात10 पूर्व एशिया में अभियान11 लापता होना और मृत्यु की खबर 11.1 टिप्पणी12 सन्दर्भ13 बाहरी कड़ियाँ,] 
    जन्म और कौटुंबिक जीवन
    नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। कटक शहर के प्रसिद्द वकील जानकीनाथ बोस व कोलकाता के एक कुलीन दत्त परिवार से  प्रभावती की 6 बेटियाँ और 8 बेटे कुल मिलाकर 14 संतानें थी। जानकीनाथ बोस पहले सरकारी वकील बाद में निजी तथा  कटक की महापालिका में लंबे समय तक काम किया व बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। सुभाषचंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे।। 
     स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश और कार्य
    कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी, देशबंधु चित्तरंजन दास के कार्य से प्रेरित होकर, सुभाष दासबाबू के साथ काम करना चाहते थे। इंग्लैंड से भारत वापस आने पर वे सर्वप्रथम मुम्बई गये और मणिभवन में 20 जुलाई1921 को महात्मा गाँधी से मिले। कोलकाता जाकर दासबाबू से मिले उनके साथ काम करने की इच्छा प्रकट की। दासबाबू उन दिनों अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध गाँधीजी के असहयोग आंदोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ सुभाषबाबू इस आंदोलन में सहभागी हो गए।  1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। विधानसभा के अंदर से अंग्रेज़ सरकार का विरोध करने के लिए,कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने लड़कर जीता। स्वयं दासबाबू कोलकाता के महापौर बन गए। उन्होंने सुभाषबाबू को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। सुभाषबाबू ने अपने कार्यकाल में कोलकाता महापालिका का पूरा ढाँचा और काम करने का ढंग ही बदल डाला। कोलकाता के रास्तों के अंग्रेज़ी नाम बदलकर, उन्हें भारतीय नाम दिए गए। स्वतंत्रता संग्राम में प्राण न्यौछावर करनेवालों के परिवार के सदस्यों को महापालिका में नौकरी मिलने लगी।
    बहुत जल्द ही, सुभाषबाबू देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाषबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत युवकों की इंडिपेंडन्स लिग शुरू की। 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया, तब कांग्रेस ने उसे काले झंडे दिखाए। कोलकाता में सुभाषबाबू ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। साइमन कमीशन को उत्तर देने के लिए, कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम 8 सदस्यीय आयोग को सौंपा। पंडित मोतीलाल नेहरू इस आयोग के अध्यक्ष और सुभाषबाबू उसके एक सदस्य थे। इस आयोग ने नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की। 1928 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ। इस अधिवेशन में सुभाषबाबू ने खाकी गणवेश धारण करके पंडित मोतीलाल नेहरू को सैन्य तरीके से सलामी दी। गाँधीजी उन दिनों पूर्ण स्वराज्य की मांग से सहमत नहीं थे। इस अधिवेशन में उन्होंने अंग्रेज़ सरकार से डोमिनियन स्टेटस माँगने की ठान ली थी। किन्तु  सुभाषबाबू और पंडित जवाहरलाल नेहरू को पूर्ण स्वराजकी मांग से पीछे हटना स्वीकार नहीं था। अंत में यह तय किया गया कि अंग्रेज़ सरकार को डोमिनियन स्टेटस देने के लिए, 1 वर्ष का समय दिया जाए। यदि 1 वर्ष में अंग्रेज़ सरकार ने यह मॉंग पूरी नहीं की, तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज की मांग करेगी। अंग्रेज़ सरकार ने यह मांग पूरी नहीं की। इसलिए 1930 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जब लाहौर में हुआ, तब निश्चित किया गया कि 26 जनवरी का दिन स्वतंत्रता दिन के रूप में मनाया जाएगा।
    26 जनवरी1931 के दिन कोलकाता में राष्ट्रध्वज फैलाकर सुभाषबाबू एक विशाल मोर्चा का नेतृत्व कर रहे थे। तब पुलिस ने उनपर लाठी चलायी और उन्हे घायल कर दिया। जब सुभाषबाबू जेल में थे, तब गाँधीजी ने अंग्रेज सरकार से समझोता किया और सब कैदीयों को रिहा किया गया। किन्तु अंग्रेज सरकार ने सरदार भगत सिंह जैसे क्रांतिकारकों को रिहा करने से माना कर दिया। सुभाषबाबू चाहते थे कि इस विषय पर गाँधीजी अंग्रेज सरकार के साथ किया गया समझोता तोड दे। किन्तु गाँधीजी अपनी ओर से दिया गया वचन तोडने को राजी नहीं थे। भगत सिंह की फॉंसी माफ कराने के लिए, गाँधीजी ने सरकार से बात की। अंग्रेज सरकार अपने स्थान पर अडी रही और भगत सिंह और उनके साथियों को फॉंसी दी गयी। भगत सिंह को न बचा पाने पर, सुभाषबाबू गाँधीजी और कांग्रेस के नीतिओं से बहुत    रुष्ट हो गए। 
     कारावास
    १९३९ में बोस का आल इण्डिया कॉन्ग्रेस सभा में आगमन छाया सौजन्य:टोनी मित्रा
    अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाषबाबू को कुल 11 बार कारावास हुआ। सबसे पहले उन्हें 1921में 6 माह का कारावास हुआ।
    1925 में गोपिनाथ साहा नामक एक क्रांतिकारी कोलकाता के पुलिस अधिक्षक चार्लस टेगार्ट को मारना चाहता था। उसने भूल से अर्नेस्ट डे नामक एक व्यापारी को मार डाला। इसके लिए उसे फॉंसी की सजा दी गयी। गोपिनाथ को फॉंसी होने के बाद सुभाषबाबू जोर से रोये। उन्होने गोपिनाथ का शव मॉंगकर उसका अंतिम  संस्कार किया। इससे अंग्रेज़ सरकार ने यह निष्कर्ष किया कि सुभाषबाबू ज्वलंत क्रांतिकारकों से न केवल ही संबंध रखते हैं, बल्कि वे ही उन क्रांतिकारकों का स्फूर्तीस्थान हैं। इसी बहाने अंग्रेज़ सरकार ने सुभाषबाबू को गिरफतार किया और बिना कोई मुकदमा चलाए, उन्हें अनिश्चित कालखंड के लिए म्यानमार के मंडाले कारागृह में बंदी बनाया।
    5 नवंबर1925 के दिन, देशबंधू चित्तरंजन दास कोलकाता में चल बसें। सुभाषबाबू ने उनकी मृत्यू की सूचना मंडाले कारागृह में रेडियो पर सुनी।
    मंडाले कारागृह में रहते समय सुभाषबाबू का स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया। उन्हें तपेदिक हो गया। परंतू अंग्रेज़ सरकार ने फिर भी उन्हें रिहा करने से मना कर दिया। सरकार ने उन्हें रिहा करने के लिए यह शर्त रखी की वे चिकित्सा के लिए यूरोप चले जाए। किन्तु सरकार ने यह तो स्पष्ट नहीं किया था कि चिकित्सा के बाद वे भारत कब लौट सकते हैं। इसलिए सुभाषबाबू ने यह शर्त स्वीकार नहीं की। अन्त में परिस्थिती इतनी कठिन हो गयी की शायद वे कारावास में ही मर जायेंगे। अंग्रेज़ सरकार यह खतरा भी नहीं उठाना चाहती थी, कि सुभाषबाबू की कारागृह में मृत्यू हो जाए। इसलिए सरकार ने उन्हे रिहा कर दिया। फिर सुभाषबाबू चिकित्सा के लिए डलहौजी चले गए।
    1930 में सुभाषबाबू कारावास में थे। तब उन्हे कोलकाता के महापौर चुना गया। इसलिए सरकार उन्हे रिहा करने पर बाध्य हो गयी।
    1932 में सुभाषबाबू को फिर से कारावास हुआ। इस बार उन्हे अलमोडा जेल में रखा गया। अलमोडा जेल में उनका स्वास्थ्य फिर से बिगड़  गया। वैद्यकीय सलाह पर सुभाषबाबू इस बार चिकित्सा हेतु यूरोप जाने को सहमत हो गए।
     यूरोप प्रवास
    1933 से 1936 तक सुभाषबाबू यूरोप में रहे।
    यूरोप में सुभाषबाबू ने अपने स्वस्थ का ध्यान रखते समय, अपना कार्य जारी रखा। वहाँ वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने उन्हें, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता करने का वचन दिया। आयरलैंड के नेता डी वॅलेरा सुभाषबाबू के अच्छे दोस्त बन गए।
    जब सुभाषबाबू यूरोप में थे, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का ऑस्ट्रिया में निधन हो गया। सुभाषबाबू ने वहाँ जाकर पंडित जवाहरलाल नेहरू को सांत्वना दिया।
    बाद में सुभाषबाबू यूरोप में विठ्ठल भाई पटेल से मिले। विठ्ठल भाई पटेल के साथ सुभाषबाबू ने पटेल-बोस विश्लेषण प्रसिद्ध किया, जिस में उन दोनों ने गाँधीजी के नेतृत्व की बहुत गहरी निंदा की। बाद में विठ्ठल भाई पटेल बीमार पड गए, तब सुभाषबाबू ने उनकी बहुत सेवा की। किन्तु विठ्ठल भाई पटेल का निधन हो गया।
    विठ्ठल भाई पटेल ने अपनी वसीयत में अपनी करोडों की संपत्ती सुभाषबाबू के नाम कर दी। किन्तु उनके निधन के पश्चात, उनके भाई सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस वसीयत को स्वीकार नहीं किया और उसपर अदालत में मुकदमा चलाया। यह मुकदमा जितकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने वह संपत्ती, गाँधीजी के हरिजन सेवा कार्य को भेट दे दी।
    1934 में सुभाषबाबू को उनके पिता मृत्त्यूशय्या पर होने की सूचना मिली। इसलिए वे हवाई जहाज से कराची होकर कोलकाता लौटे। कराची में उन्हे पता चला की उनके पिता की मृत्त्यू हो चुकी थी। कोलकाता पहुँचते ही, अंग्रेज सरकार ने उन्हे बंदी बना दिया और कई दिन जेल में रखकर, वापस यूरोप भेज दिया।
     हरीपुरा कांग्रेस का अध्यक्षपद
    नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गाँधी के साथ हरिपुरा मे सन 1938
    1938 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हरिपुरा में होने का तय हुआ था। इस अधिवेशन से पहले गाँधीजी ने कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए सुभाषबाबू को चुना। यह कांग्रेस का 51वा अधिवेशन था। इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष सुभाषबाबू का स्वागत 51 बैलों ने खींचे हुए रथ में किया गया।
    इस अधिवेशन में सुभाषबाबू का अध्यक्षीय भाषण बहुत ही प्रभावी हुआ। किसी भी भारतीय राजकीय व्यक्ती ने शायद ही इतना प्रभावी भाषण कभी दिया हो।
    अपने अध्यक्षपद के कार्यकाल में सुभाषबाबू ने योजना आयोग की स्थापना की। पंडित जवाहरलाल नेहरू इस के अध्यक्ष थे। सुभाषबाबू ने बेंगलोर में विख्यात वैज्ञानिक सर विश्वेश्वरैय्या की अध्यक्षता में एक विज्ञान परिषद भी ली।
    1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण किया। सुभाषबाबू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने चिनी जनता की सहायता के लिए, डॉ द्वारकानाथ कोटणीस के नेतृत्व में वैद्यकीय पथक भेजने का निर्णय लिया। आगे चलकर जब सुभाषबाबू ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जापान से सहयोग किया, तब कई लोग उन्हे जापान के हस्तक और फासिस्ट कहने लगे। किन्तु इस घटना से यह सिद्ध होता हैं कि सुभाषबाबू न तो जापान के हस्तक थे, न ही वे फासिस्ट विचारधारा से सहमत थे।
     कांग्रेस के अध्यक्षपद से त्यागपत्र
    1938 में गाँधीजी ने कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए सुभाषबाबू को चुना तो था, किन्तु गाँधीजी को सुभाषबाबू की कार्यपद्धती पसंद नहीं आयी। इसी बीच युरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छा गए थे। सुभाषबाबू चाहते थे कि इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर, भारत का स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र किया जाए। उन्होने अपने अध्यक्षपद की कार्यकाल में इस तरफ कदम उठाना भी शुरू कर दिया था। गाँधीजी इस विचारधारा से सहमत नहीं थे।
    1939 में जब नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने का वक्त आया, तब सुभाषबाबू चाहते थे कि कोई ऐसी व्यक्ती अध्यक्ष बन जाए, जो इस मामले में किसी दबाव के सामने न झुके। ऐसी कोई दुसरी व्यक्ती सामने न आने पर, सुभाषबाबू ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष बने रहना चाहा। किन्तु गाँधीजी अब उन्हे अध्यक्षपद से हटाना चाहते थे। गाँधीजीने अध्यक्षपद के लिए पट्टाभी सितारमैय्या को चुना। कविवर्य रविंद्रनाथ ठाकूर ने गाँधीजी को पत्र लिखकर सुभाषबाबू को ही अध्यक्ष बनाने की विनंती की। प्रफुल्लचंद्र राय और मेघनाद सहा जैसे वैज्ञानिक भी सुभाषबाबू को फिर से अध्यक्ष के रूप में देखना चाहतें थे। किन्तु गाँधीजी ने इस मामले में किसी की बात नहीं मानी। कोई समझोता न हो पाने पर, बहुत वर्षों के बाद, कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए चुनाव लडा गया।
    सब समझते थे कि जब महात्मा गाँधी ने पट्टाभी सितारमैय्या का साथ दिया हैं, तब वे चुनाव आसानी से जीत जाएंगे। किन्तु वास्तव में, सुभाषबाबू को चुनाव में 1580 मत मिल गए और पट्टाभी सितारमैय्या को 1377 मत मिलें। गाँधीजी के विरोध के बाद भी सुभाषबाबू 203 मतों से यह चुनाव जीत गए।
    किन्तु चुनाव के निकाल के साथ बात समाप्त  नहीं हुई। गाँधीजी ने पट्टाभी सितारमैय्या की हार को अपनी हार बताकर, अपने साथीयों से कह दिया कि यदि वें सुभाषबाबू के नीतिओं से सहमत नहीं हैं, तो वें कांग्रेस से हट सकतें हैं। इसके बाद कांग्रेस कार्यकारिणी के 14 में से 12 सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू तटस्थ रहें और अकेले शरदबाबू सुभाषबाबू के साथ बनें रहें।
    1939 का वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ। इस अधिवेशन के समय सुभाषबाबू तेज ज्वर से इतने रुग्न पड गए थे, कि उन्हे स्ट्रेचर पर लेटकर अधिवेशन में आना पडा। गाँधीजी इस अधिवेशन में उपस्थित नहीं रहे। गाँधीजी के साथीयों ने सुभाषबाबू से बिल्कुल सहकार्य नहीं दिया।
    अधिवेशन के बाद सुभाषबाबू ने समझोते के लिए बहुत कोशिश की। किन्तु गाँधीजी और उनके साथीयों ने उनकी एक न मानी। परिस्थिती ऐसी बन गयी कि सुभाषबाबू कुछ काम ही न कर पाए। अन्त में तंग आकर, 29 अप्रैल1939 को सुभाषबाबू ने कांग्रेस अध्यक्षपद से त्यागपत्र दे दिया।
     फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना
    3 मई1939 के दिन, सुभाषबाबू नें कांग्रेस के अंतर्गत फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। कुछ दिन बाद, सुभाषबाबू को कांग्रेस से निकाला गया। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक अपने आप एक स्वतंत्र पार्टी बन गयी।
    द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले से ही, फॉरवर्ड ब्लॉक ने स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र करने के लिए, जनजागृती शुरू की। इसलिए अंग्रेज सरकार ने सुभाषबाबू सहित फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी मुख्य नेताओ को कैद कर दिया। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सुभाषबाबू जेल में निष्क्रिय रहना नहीं चाहते थे। सरकार को उन्हे रिहा करने पर बाध्य करने के लिए सुभाषबाबू ने जेल में आमरण उपोषण शुरू कर दिया। तब सरकार ने उन्हे रिहा कर दिया। किन्तु अंग्रेज सरकार यह नहीं चाहती थी, कि सुभाषबाबू युद्ध काल में मुक्त रहें। इसलिए सरकार ने उन्हे उनके ही घर में नजरकैद कर के रखा।
     नजरकैद से पलायन
    नजरकैद से निकलने के लिए सुभाषबाबू ने एक योजना बनायी। 16 जनवरी1941 को वे पुलिस को चकमा देने के लिये एक पठान मोहम्मद जियाउद्दीन का भेष धरकर, अपने घर से भाग निकले। शरदबाबू के बडे बेटे शिशिर ने उन्हे अपनी गाडी से कोलकाता से दूर, गोमोह तक पहुँचाया। गोमोह रेल्वे स्टेशन से फ्रंटियर मेल पकडकर वे पेशावर पहुँचे। पेशावर में उन्हे फॉरवर्ड ब्लॉक के एक सहकारी, मियां अकबर शाह मिले। मियां अकबर शाह ने उनकी भेंट, कीर्ती किसान पार्टी के भगतराम तलवार से कर दी। भगतराम तलवार के साथ में, सुभाषबाबू पेशावर से अफ़्ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल की ओर निकल पडे। इस सफर में भगतराम तलवार, रहमतखान नाम के पठान बने थे और सुभाषबाबू उनके गूंगे-बहरे चाचा बने थे। पहाडियों में पैदल चलते हुए उन्होने यह यात्रा कार्य पूरा किया।
    काबुल में सुभाषबाबू 2 माह तक उत्तमचंद मल्होत्रा नामक एक भारतीय व्यापारी के घर में रहे। वहाँ उन्होने पहले रूसी दूतावास में प्रवेश पाना चाहा। इस में असफल रहने पर, उन्होने जर्मन और इटालियन दूतावासों में प्रवेश पाने का प्रयास किया। इटालियन दूतावास में उनका प्रयास सफल रहा। जर्मन और इटालियन दूतावासों ने उनकी सहायता की। अन्त में ओर्लांदो मात्सुता नामक इटालियन व्यक्ति बनकर, सुभाषबाबू काबुल से रेल्वे से निकलकर रूस की राजधानी मॉस्को होकर जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुँचे। 
    नाजी जर्मनी में प्रवास एवं हिटलर से मुलाकात
    बर्लिन में सुभाषबाबू सर्वप्रथम रिबेनट्रोप जैसे जर्मनी के अन्य नेताओ से मिले। उन्होने जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडिओ की स्थापना की। इसी बीच सुभाषबाबू, नेताजी नाम से जाने जाने लगे। जर्मन सरकार के एक मंत्री एडॅम फॉन ट्रॉट सुभाषबाबू के अच्छे दोस्त बन गए।
    अंतत: 29 मई1942 के दिन, सुभाषबाबू जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडॉल्फ हिटलर से मिले। किन्तु हिटलर को भारत के विषय में विशेष रूची नहीं थी। उन्होने सुभाषबाबू को सहायता का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया।
    कई वर्ष पूर्व हिटलर ने माईन काम्फ नामक अपना आत्मचरित्र लिखा था। इस पुस्तक में उन्होने भारत और भारतीय लोगों की बुराई की थी। इस विषय पर सुभाषबाबू ने हिटलर से अपनी नाराजी व्यक्त की। हिटलर ने अपने किये पर क्षमा माँगी और माईन काम्फ की अगली आवृत्ती से वह परिच्छेद निकालने का वचन दिया।
    अंत में, सुभाषबाबू को पता चला कि हिटलर और जर्मनी से उन्हे कुछ और नहीं मिलने वाला हैं। इसलिए 8 मार्च1943 के दिन, जर्मनी के कील बंदर में, वे अपने साथी अबिद हसन सफरानी के साथ, एक जर्मन पनदुब्बी में बैठकर, पूर्व एशिया की तरफ निकल गए। यह जर्मन पनदुब्बी उन्हे हिंद महासागर में मादागास्कर के किनारे तक लेकर आई। वहाँ वे दोनो खूँखार समुद्र में से तैरकर जापानी पनदुब्बी तक पहुँच गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में, किसी भी दो देशों की नौसेनाओ की पनदुब्बीयों के बीच, नागरिको की यह एकमात्र बदली हुई थी। यह जापानी पनदुब्बी उन्हे इंडोनेशिया के पादांग बंदर तक लेकर आई।
     पूर्व एशिया में अभियान
    स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार
    पूर्व एशिया पहुँचकर सुभाषबाबू ने सर्वप्रथम, वयोवृद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से भारतीय स्वतंत्रता परिषद का नेतृत्व सँभाला। सिंगापुर के फरेर पार्क में रासबिहारी बोस ने भारतीय स्वतंत्रता परिषद का नेतृत्व सुभाषबाबू को सौंप दिया।
    जापान के प्रधानमंत्री जनरल हिदेकी तोजो ने, नेताजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर, उन्हे सहकार्य करने का आश्वासन दिया। कई दिन पश्चात, नेताजी ने जापान की संसद डायट के सामने भाषण किया।
    21 अक्तूबर1943 के दिन, नेताजी ने सिंगापुर में अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) की स्थापना की। वे स्वयं इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री बने। इस सरकार को कुल 9 देशों ने मान्यता दी। नेताजी आज़ाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बन गए।
    आज़ाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की फौज से पकडे हुए भारतीय युद्धबंदियों को भर्ती किया गया। आज़ाद हिन्द फ़ौज में औरतो के लिए झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी।
    पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहाँ स्थायिक भारतीय लोगों से आज़ाद हिन्द फौज में भरती होने का और उसे आर्थिक सहायता करने का आवाहन किया। उन्होने अपने आवाहन में संदेश दिया तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा
    द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच आज़ाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया। अपनी फौज को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने चलो दिल्ली  का नारा दिया। दोनो फौजो ने अंग्रेजों से अंदमान और निकोबार द्वीप जीत लिए। यह द्वीप अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद के अनुशासन में रहें। नेताजी ने इन द्वीपों का शहीद और स्वराज द्वीप  ऐसा नामकरण किया। दोनो फौजो ने मिलकर इंफाल और कोहिमा पर आक्रमण किया। किन्तु बाद में अंग्रेजों का पलडा भारी पडा और दोनो फौजो को पिछे हटना पडा।
    जब आज़ाद हिन्द फौज पिछे हट रही थी, तब जापानी सेना ने नेताजी के भाग जाने की व्यवस्था की। परंतु नेताजी ने झाँसी की रानी रेजिमेंट की लडकियों के साथ सैकडो मिल चलते जाना पसंद किया। इस प्रकार नेताजी ने सच्चे नेतृत्व का एक आदर्श ही बनाकर रखा।
    6 जुलाई1944 को आजाद हिंद रेडिओ पर अपने भाषण के माध्यम से गाँधीजी से बात करते हुए, नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद तथा आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्येश्य के बारे में बताया।अपनी जंग के लिए उनका आशिर्वाद माँगा । ।
     लापता होना और मृत्यु की खबर
    द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूँढना आवश्यक था। उन्होने रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया था।
    18 अगस्त1945 को नेताजी हवाई जहाज से मांचुरिया की तरफ जा रहे थे। इस यात्रा के बीच वे लापता हो गए। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिये।
    23 अगस्त1945 को जापान की दोमेई खबर संस्था ने विश्व को सूचना दी, कि 18 अगस्त के दिन, नेताजी का हवाई जहाज ताइवान की भूमि पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उस दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होकर नेताजी ने अस्पताल में अंतिम साँस ले ली थी।
    दुर्घटनाग्रस्त हवाई जहाज में नेताजी के साथ उनके सहकारी कर्नल हबिबूर रहमान थे। उन्होने नेताजी को बचाने का निश्च्हय किया, किन्तु वे सफल नहीं रहे। फिर नेताजी की अस्थियाँ जापान की राजधानी तोकियो में रेनकोजी नामक बौद्ध मंदिर में रखी गयी।
    स्वतंत्रता के पश्चात, भारत सरकार ने इस घटना की जाँच करने के लिए, 1956 और 1977 में 2 बार एक आयोग को नियुक्त किया। दोनो बार यह परिणाम निकला की नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गये थे। किन्तु जिस ताइवान की भूमि पर यह दुर्घटना होने की सूचना थी, उस ताइवान देश की सरकार से तो, इन दोनो आयोगो ने बात ही नहीं की।
    1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बता दिया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था। 2005 में मुखर्जी आयोग ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिस में उन्होने कहा, कि नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होने का कोई प्रमाण नहीं हैं। किन्तु भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।
    18 अगस्त1945 के दिन नेताजी कहाँ लापता हो गए और उनका आगे क्या हुआ, यह भारत के इतिहास का सबसे बडा अनुत्तरित रहस्य बन गया हैं।
    देश के अलग-अलग भागों में आज भी नेताजी को देखने और मिलने का दावा करने वाले लोगों की कमी नहीं है। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छत्तीसगढ़ के रायगढ़ तक में नेताजी के होने को लेकर कई दावे हुये हैं किन्तु इनमें से सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है। छत्तीसगढ़ में तो सुभाष चंद्र बोस के होने को लेकर मामला राज्य सरकार तक गया। हालांकि राज्य सरकार ने इसे हस्तक्षेप योग्य नहीं मानते हुये मामले की फाइल बंद कर दी। 
    टिप्पणी
    • कोई भी व्यक्ति कष्ट और बलिदान के माध्यम असफल नहीं हो सकता, यदि वह पृथ्वी पर कोई चीज गंवाता भी है तो अमरत्व का वारिस बन कर काफी कुछ प्राप्त कर लेगा।...सुभाष चंद्र बोस
    • एक मामले में अंग्रेज बहुत भयभीत थे। सुभाषचंद्र बोस, जो उनके सबसे अधिक दृढ़ संकल्प और संसाधन वाले भारतीय शत्रु थे, ने कूच कर दिया था।...क्रिस्टॉफर बेली और टिम हार्पर 
    • सन्दर्भ

पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण



Saturday 22 January 2011

26 जनवरी गणतंत्र दिवस की एकता यात्रा व विरोध के स्वरों का निहितार्थ

26 जनवरी गणतंत्र दिवस की एकता यात्रा व विरोध के स्वरों का निहितार्थ
जबसे राज्य में उमर अब्दुल्ला मु.मं.बने हैं हम सोचते थे कि cong - PDP गठबंधन के समय बने आतंक समर्थक नेताओं के बाद अब वातावरण सुधरेगा. किन्तु यह तो PDP से बड़ा पाकि. निकला ! जब देश का तिरंगा जलाया जाता है तो इनकी सरकार आंख बंद रखती है ! जब अमरनाथ यात्रिओं को दी सुविधा की घोषणा रोक ली जाती है, जहाँ पाक समर्थक टोले को संतुष्ट करना सरकारी आवश्यकता हो! वहां मनोबल आतंकियों का बढ़ाया जाता है, सेना को अपराधी ठहराया जाता है! आवश्यक हो जाता है सेना व जानता का मनोबल बढ़ाया जाये और यह दायित्व बनता है सरकार का!  केंद्र व राज्य सरकार अपना दायित्व न निभाए तो राष्ट्रवादी सोच के दल ने यह बीड़ा उठाया ! राष्ट्रवाद के मानबिंदु राष्ट्र ध्वज को राष्ट्रीय उत्सव पर फहराना सेना व जानता के मनोबल का प्रतीक बनता है, राजनीति का नहीं ! इसका विरोध करना, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उनका साथ देना राष्ट्र के शत्रुओं का कार्य है ! राजनैतिक रोटी सेकना इसे कहते हैं ! 
सारा चित्र और स्पष्ट करने हेतु दृश्य पटल का विस्तार करते है: 
कुछ पीछे चलते हैं जब प्रधानमंत्री जी ने कश्मीर मुद्दे पर बुलाई सर्वदलीय बैठक में एक बड़ी गम्भीर और व्यापक बहस छेड़ने वाली बात कह दी कि "यदि सभी दल चाहें तो कश्मीर को स्वायत्तता दी जा सकती है…", किन्तु आश्चर्य की बात है कि भाजपा को छोड़कर किसी भी दल ने इस बात पर आपत्ति दर्ज करना तो दूर स्पष्टीकरण माँगना भी उचित नहीं समझा।हमारे एक मित्र सुरेश चिपलूनकर जी के अनुसार प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तावित "स्वायत्तता" का क्या अर्थ है? क्या प्रधानमंत्री या कांग्रेस स्वयं भी इस बारे में स्पष्ट है? या ऐसे ही हवा में कुछ वक्तव्य  उछाल दिया? कांग्रेस वाले स्वायत्तता किसे देंगे? उन लोगों को जो वर्षों से भारतीय टुकड़ों पर पल रहे हैं फ़िर भी अमरनाथ में यात्रियों की सुविधा के लिये अस्थाई रुप से भूमि का एक टुकड़ा देने में उन्हें कष्ट होने लगता है और विरोध में सड़कों पर आ जाते हैं… या स्वायत्तता उन्हें देंगे जो इस भूमि पर सरेआम भारत का तिरंगा जला रहे हैं, 15 अगस्त को "काला दिवस" मना रहे हैं?
इतने गम्भीर मुद्दे पर राष्ट्रीय मीडिया, समाचारपत्रों और चैनलों की ठण्डी प्रतिक्रिया और शून्य प्रस्तुति और भी आश्चर्य पैदा करने वाली थी। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के बाद भी, मीडिया क्या दिखा रहा था ? 1) शाहरुख खान ने KKR के लिये पाकिस्तानी खिलाड़ी को खरीदा और पाकिस्तान के खिलाड़ियों का समर्थन किया… 2) राहुल गाँधी की लोकप्रियता में भारी उछाल…, 3) पीपली लाइव की लॉंचिंग… आदि-आदि-आदि। कश्मीर की हिंसा के बारे क्या दिखाया गया ?… मात्र शीर्षक, उपशीर्षक, संकेतक और स्क्रीन में नीचे चलने वाले स्क्रोल में अधिकतर आपको "कश्मीर में गुस्सा…", "कश्मीर का युवा आक्रोशित…", "कश्मीर में सुरक्षा बलों पर आक्रोशित युवाओं की पत्थरबाजी…" जैसी खबरें दिखाई गई। प्रश्न उठता है कि क्या मीडिया और चैनलों में राष्ट्रबोध नाम की चीज़ एकदम समाप्त हो गई है? या ये किसी के संकेत पर इस प्रकार के शीर्षक दिखाते हैं?
भारत की सरकार के कई कानून वहाँ लागू नहीं, कुछ को वे मानते नहीं, उनका झण्डा अलग है, उनका संविधान अलग है! भारत सरकार (यानी प्रकारान्तर से करोड़ों टैक्स भरने वाले) तो इन कश्मीरियों को 60 साल से पाल-पोस रहे हैं,धारा 370 के तहत उन्हें प्राप्त विशेषाधिकार के कारण भारत का नागरिक वहाँ भूमि खरीद नहीं सकता, हिन्दुओं(कश्मीरी पण्डितों) को सुनियोजित" धार्मिक छटनी" के तहत कश्मीर से बाहर खदेड़ा जा चुका है… फ़िर इन्हें किस बात का आक्रोश?
कहीं यह हरामखोरी की चर्बी तो नहीं? लगता तो यही है। अन्यथा क्या कारण है कि 14-15 साल के लड़के से लेकर यासीन मलिकगिलानी और अब्दुल गनी लोन जैसे बुज़ुर्ग भी भारत सरकार से, जब देखो तब खफ़ा रहते हैं। पूरे देश का खून निचोढ़ कर खटमल पाले जा रहे हैं और खटमल ही आक्रोश दिखाए ? आश्चर्य !
जबकि दूसरी तरफ़ देखें तो भारत के नागरिक, हिन्दू संगठन, सभी कर दाता और भारत को अखण्ड देखने की चाह रखने वाले देशप्रेमी… जिनको वास्तव में गुस्सा आना चाहिये, आक्रोशित होना चाहिये, रोष जताना चाहिये… वे नपुंसक की भांति  चुपचाप बैठे और "स्वायत्तता" का राग सुन रहे थे? कोई भी उठकर ये प्रश्न नहीं करता कि कश्मीर के पत्थरबाजों को पालने, यासीन मलिक जैसे देशद्रोहियों को दिल्ली लाकर पाँच सितारा होटलों में रुकवाने और भाषण करवाने के लिये हम टैक्स क्यों दें? किसी राजदीप या बुरका दत्त ने कभी किसी कश्मीरी पण्डित का इंटरव्यू लिया कि उसमें कितना आक्रोश है? 
लाखों हिन्दू लूटे गये, बलात्कार किये गये, उनके मन्दिर तोड़े गये, क्योंकि गिलानी के पाकिस्तानी आका ऐसा चाहते थे, तो जिन्हें गुस्सा आया होगा कभी उन्हें किसी चैनल पर दिखाया? नहीं दिखाया, क्यों? क्या आक्रोशित होने और गुस्सा होने का अधिकार केवल कश्मीर के हुल्लड़बाजों को ही है, राष्ट्रवादियों को नहीं?
किन्तु जैसे ही "राष्ट्रवाद" की बात की जाती है, मीडिया को हुड़हुड़ी का बुखार आ जाता है, राष्ट्रवाद की बात करना, हिन्दू हितों की बात करना तो मानो वर्जित ही है… किसी टीवी एंकर की औकात नहीं है कि वह कश्मीरी पण्डितों की दुर्गति और नारकीय परिस्थितियों पर कोई कार्यक्रम बनाये और उसे शीर्षक बनाकर जोर-शोर से प्रचारित कर सके, कोई चैनल देश को यह नहीं बताता कि आज तक कश्मीर के लिये भारत सरकार ने कितना-कुछ किया है, क्योंकि उनके मालिकों को "राजनीति के अनुसार" रहना है, उन्हें कांग्रेस को रुष्ट नहीं करना है… स्वाभाविक सी बात है कि तब जनता पूछेगी कि इतना पैसा खर्च करने के बाद भी कश्मीर में बेरोज़गारी क्यों है? विगत 60 वर्ष से कश्मीर में किसकी सरकार चल रही थी? दिल्ली में बैठे सूरमा, खरबों रुपये खर्च करने बाद भी कश्मीर में शान्ति क्यों नहीं ला सके? ऐसे असुविधाजनक प्रश्नों से "शर्म-निरपेक्ष" भी बचना चाहता है, इसलिये हमें समझाया जाता रहा है कि "कश्मीरी युवाओं में आक्रोश और गुस्सा" है।
इधर अपने देश में गद्दार श्रेणी का मीडिया है, प्रस्तुत चित्र में देखिये "नवभारत टाइम्स अखबार" चित्र के शीर्षक में लिखता है "कश्मीरी मुसलमान महिला" और "भारतीय पुलिसवाला", क्या अर्थ है इसका? क्या नवभारत टाइम्स संकेत करना चाहता है कि कश्मीर भारत से अलग हो चुका है और भारतीय पुलिस(?) कश्मीरी मुस्लिमों पर अत्याचार कर रही है? यही तो पाकिस्तानी और अलगाववादी कश्मीरी भी कहते हैं… हास्यास्पद लगता है जब यही मीडिया संस्थान "अमन की आशा" टाइप के आलतू-फ़ालतू कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं। 
जबकि उधर पाकिस्तान में उच्च स्तर पर सभी के सभी लोग कश्मीर को भारत से अलग करने में जी-जान से जुटे हैं, इसका प्रमाण यह है कि हाल ही में जब संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान किं मून ने कश्मीर के सन्दर्भ में अपना विवादास्पद बयान पढ़ा था (बाद में उन्होंने कहा कि यह उनका मूल बयान नहीं है)... वास्तव में बान के बयान का आलेख बदलने वाला व्यक्ति संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का प्रवक्ता फ़रहान हक है, जिसने मूल बयान में हेराफ़ेरी करके उसमें "कश्मीर" जोड़ दिया। फ़रहान हक ने तो अपने देश के प्रति देशभक्ति दिखाई, किन्तु भारत के तथाकथित सेकुलरिज़्म के पैरोकार क्यों अपना मुँह सिले बैठे रहते हैं? 
विश्व भर में दाऊद इब्राहीम का पता लेकर घूमते रहते हैं… दाऊद यहाँ है, दाऊद वहाँ है, दाऊद ने आज खाना खाया, दाऊद ने आज पानी पिया… अरे भाई, देश की जनता को इससे क्या मतलब? देश की जनता तो तब खुश होगी, जब सरकार "रॉ" जैसी संस्था के आदमियों के सहयोग से दाऊद को पाकिस्तान में घुसकर निपटा दें… और फ़िर मीडिया भारत की सरकार का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुणगान करे… यह तो मीडिया और सरकार से बनेगा नहीं… इसलिये "अमन की आशा" का राग अलापते हैं…।
दिल्ली और विभिन्न राज्यों में एक "अल्पसंख्यक आयोग" और "मानवाधिकार आयोग" नाम के दो "बिजूके" बैठे हैं, किन्तु  इनकी दृष्टी में कश्मीरी हिन्दुओं का कोई मानवाधिकार नहीं है, गलियों से आकर पत्थर मारने वाले, गोलियाँ चलाने वालों से सहानुभूति है, किन्तु अपने घर-परिवार से दूर रहकर 24 घण्टे अपना दायित्व निभाने वाले सैनिक के लिये कोई मानवाधिकार नहीं? मार-मारकर भगाये गये कश्मीरी पण्डित इनकी दृष्टी में "अल्पसंख्यक" नहीं हैं, क्योंकि "अल्पसंख्यक" की परिभाषा भी तो इन्हीं कांग्रेसियों द्वारा गढ़ी गई है। 
जब मनमोहन सिंह जी को यह कहना तो याद रहता है कि "देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है…", किन्तु कश्मीरी पंडितों के दर्द और लाखों अमरनाथ यात्रियों के औचित्यपूर्ण अधिकार के मुद्दे पर उनके मुँह में दही जम जाता है। तब सारा शासन प्रशासन, उनके सहारे चलते राज्य सभी उसका अनुसरण ही करेंगे ! वास्तव में गाँधीवादियों, सेकुलरों और मीडिया ने मिलकर एकदम "बधियाकरण" ही कर डाला है देश का… देशहित से जुड़े किसी मुद्दे पर कोई सार्थक बहस नहीं, भारत के हितों से जुड़े मुद्दों पर देश का पक्ष लेने की बजाय, या तो विदेशी ताकतों का गुणगान या फ़िर देशविरोधी ताकतों के प्रति सहानुभूति पैदा करना… आखिर कितना गिरेगा हमारा मीडिया? 
अब जबकि खरबों रुपये खर्च करने के बाद भी कश्मीर की स्थिति 20 वर्ष पूर्व जैसी ही है, तो समय आ गया है कि हमें गिलानी-यासीन जैसों से दो-टूक बात करनी चाहिये कि आखिर किस प्रकार की आज़ादी चाहते हैं वे? कैसी स्वायत्तता चाहिये उन्हें? क्या स्वायत्तता का अर्थ यही है कि भारत उन लोगों को अपने आर्थिक संसाधनों से पाले-पोसे, वहाँ बिजली परियोजनाएं लगाये, बाँध बनाये… यहाँ तक कि डल झील की सफ़ाई भी केन्द्र सरकार करवाये? उनसे पूछना चाहिये कि 60 वर्ष में भारत सरकार ने जो खरबों रुपया दिया, उसका क्या हुआ? उसके बदले में पत्थरबाजों और उनके आकाओं ने भारत को एक पैसा भी लौटाया? क्या वे केवल बेशर्मी का खाना ही जानते हैं, चुकाना नहीं?
गलती पूरी तरह से उनकी भी नहीं है, नेहरु ने अपनी गलतियों से जिस कश्मीर को हमारी छाती पर बोझ बना दिया था, उसे ढोने में सभी सरकारें लगी हुई हैं… जो वर्ग विशेष को खुश करने के चक्कर में कश्मीरियों की सेवा करती रहती हैं। ये जो बार-बार मीडियाई भाण्ड, कश्मीरियों का गुस्सा, युवाओं का आक्रोश जैसी बात कर रहे हैं, यह आक्रोश और गुस्सा मात्र  "पाकिस्तानी" भावना रखने वालों के दिल में ही है, अन्यों के दिल में नहीं, तो यह लोग मशीनगनों से गोलियों की बौछार खाने की औकात ही रखते हैं जो कि उन्हें दिखाई भी जानी चाहिये…, उलटे यहाँ तो सेना पूरी तरह से हटाने की बात हो रही है। अलगाववादियों से सहानुभूति रखने वाला देशभक्त हो ही नहीं सकता, उन्हें जो भी सहानुभूति मिलेगी वह विदेश से…। चीन ने जैसे थ्येन-आनमन चौक में विद्रोह को कुचलकर रख दिया था… अब तो वैसा ही करना पड़ेगा। 
कश्मीर को 5 वर्ष के लिये पूरी तरह सेना को सौंप दो, अलगाववादी नेताओं को बंद करके जेल में सड़ाओ या उड़ाओ, धारा 370 समाप्त करके जम्मू से हिन्दुओं को कश्मीर में बसाना शुरु करो और उधर का जनसंख्या सन्तुलन बदलो…विभिन्न प्रचार माध्यमों से मूर्ख कश्मीरी उग्रवादी नेताओं और "भटके हुए नौजवानों"(?) को समझाओ कि भारत के बिना उनकी औकात दो कौड़ी की भी नहीं है… क्योंकि यदि वे पाकिस्तान में जा मिले तो नर्क मिलेगा और उनके दुर्भाग्य से "आज़ाद कश्मीर"(?) बन भी गया तो अमेरिका वहाँ किसी न किसी बहाने कदम जमायेगा…, अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी की चिंता मत करो… पाकिस्तान जब भी कश्मीर राग अलापे, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का मुद्दा जोरशोर से उठाओ…ऐसे कई-कई कदम हैं, जो तभी उठ पायेंगे, जब मीडिया सरकार का साथ दे और "अमन की आशा" जैसी नॉस्टैल्जिक उलटबाँसियां न करे…। 
किन्तु अमेरिका क्या कहेगा, पाकिस्तान क्या सोचेगा, संयुक्त राष्ट्र क्या करेगा, चीन से सम्बन्ध खराब तो नहीं होंगे जैसी "मूर्खतापूर्ण और कायरतापूर्ण सोचों" के कारण ही हमने इस देश और कश्मीर का ये हाल कर रखा है… कांग्रेस आज कश्मीर को स्वायत्तता देगी, कल असम को, परसों पश्चिम बंगाल को, फ़िर मणिपुर और केरल को…? इज़राइल तो बहुत दूर है… हमारे पड़ोस में श्रीलंका जैसे छोटे से देश ने तमिल आंदोलन को कुचलकर दिखा दिया कि यदि नेताओं में "रीढ़ की हड्डी" में जान हो, जनता में देशभक्ति की भावना हो और मीडिया सकारात्मक रुप से देशहित में सोचे तो बहुत कुछ किया जा सकता है…
किन्तु यहाँ तो मु.मं.उमर एकता यात्रा को रोकने की धमकी देते हैं, किन्तु यात्रा विरोधी प्रदर्शन को नहीं ! जो शक्ति वो एकता यात्रा को रोकने में लगा रहे हैं काश उसका एक अंश भी तिरंगा जलाने वालों को रोकने में लगाया होता तो आतंकियों का मनोबल इतना न बढता और तिरंगा या एकता यात्रा विवाद का विषय नहीं बनता! हमारे विषद का विषय यही है !!   
विविध विषयों पर मेरे अन्य लेख, भारतीय वायु सेना के उप प्रमुख अवम(से.नि.)विश्व मोहन त्तिवारी व् अन्य मित्रों के लेख आप देख तथा उनपर टिपण्णी कर सकते हैं 
-- तिलक संपादक युग दर्पण  09911111611
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पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण

Monday 17 January 2011

काफ़ी कैट (मार्जार काफ़ी) नखरों की‌ हद्द नहीं------------------------विश्व मोहन तिवारी, पूर्व एयर वाइस मार्शल

पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण


जब मैने पढ़ा कि दिल्ली में ही एक विदेशी कम्पनी की काफ़ी की दूकान में एक प्याला काफ़ी‌ दो या ढाई सौ रुपये का मिलता है वह कीमत की ऊँचाई आज के विदेशी भक्त्तों की श्रद्धा के बावजूद समझ में नहीं आ रही थी।


'डाउन टु अर्थ' में पढ़ा कि एक जंगली मार्जार ( सिवैट – जंगली बिल्ली) जब काफ़ी के गूदेदार फ़ल खाकर उसके बीज अपने गू (मल) में त्याग देता या देती है, तब जो उस बीज की‌ काफ़ी बनती‌ है, उसकी महिमा अपरम्पार है। यह माना जाता (प्रचारित किया जाता है) है कि एशियाई ताड़ -मार्जार की अँतड़ियों के आवास में से होकर जब वह बीज निकलता है तब उसमें दिव्य गंध का वास हो जाता है, यद्यपि इस प्रक्रिया का कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। ऐसा माना जाता है कि मार्जार की अँतड़ियों में आवासीय एन्ज़ाइम इसके कड़ुएपन को कम करते हैं और सुगंध को बढ़ाते हैं।


भारत में‌ इस तरह की काफ़ी के अकेले उत्पादक (?) सत्तर वर्षीय टी एस गणेश कहते हैं कि उऩ्हें इस काफ़ी और सामान्य दक्षिण भारतीय काफ़ी के स्वाद या सुगंध में कोई अंतर नहीं मालूम होता।


यह काफ़ी तथा कथित 'वैश्विक ग्राम' के खुले बाजार में ३०, ००० रुपए प्रति किग्रा. बिकती‌है !! विश्व् मे ( दक्षिण एशिया में) इसका कुल उत्पादन मात्र २०० किग्रा. प्रतिवर्ष है। और मजे की‌ बात यह है कि यद्यपि विश्व में इसके बीज का उत्पादन ( जंगल में खोजकर बटोरना) बहुत कम होता है, विदेशी‌ कम्पनियां टी एस गणेश के 'मार्जार काफ़ी' बीजों को खरीदने के लिये तैयार नहीं हैं, यद्यपि उऩ्होंने उन बीजों की प्रशंसा ही की है - यह हमारे विदेशी भक्ति का प्रतिदान है। यदि उऩ्हें यहां के बीजों की गुणवत्ता पर संदेह है तब क्या उनके सुगंध विशेषज्ञ इसे परख नहीं सकते !


टी एस गणेश तो उस दिव्य काफ़ी के बीज लगभग सामान्य काफ़ी बीजों की तरह ही मात्र २५० रु. किलो ही बेचते हैं, क्योंकि भारत में इसकी माँग नहीं‌ है। किन्तु हमारी विदेश भक्ति देखिये कि यद्यपि विदेशी कम्पनी हम से खरीदने को तैयार नहीं हैं, हम दो या ढाई सौ रु. में इस विदेशी काफ़ी का एक प्याला पीने को तैयार हैं, हमारा आखिर 'काफ़ी कैट' (कापी कैट) होना तो एक महान गुण है ही।

Saturday 1 January 2011

युगदर्पण मित्र मंडल Yug Darpan सभी भाषाओँ में

युगदर्पण मित्र मंडल Yug Darpan 
युगदर्पण की योजना, हिंदी ही नहीं सभी भाषाओँ में
समर्थ सशक्त व समृद्ध भारत हेतु ..राष्ट्र हित सर्वोपरि -
यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहाँ से
कुछ बात है कि अब तक बाकि निशान हमारा !
यह राष्ट्र हमारी पहचान है, इसके बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं !
पतंग आकाश में जो तन के उड़ा करती है,
जड़ों से कट के वो पैरों में गिरा करती है
..वर्तमान भ्रष्ट, विकृत पत्रकारिता का ही सार्थक विकल्प देने का प्रयास विगत 10 वर्ष से चल रहा है!
चैत्र नव रात्र (4 अप्रेल) युग दर्पण का स्थापना दिवस है! देश के सभी राज्यों में शाखा विस्तार करना है !
-अभी युगदर्पण को शीघ्र ही सभी भाषाओँ में करना है, क्या आप इससे जुड़ना चाहते हैं?
एक सार्थक पहल मीडिया के क्षेत्र में राष्ट्रीय साप्ताहिक युग दर्पण (भारत सरकार के सूचना प्रसारण के समाचार पत्र पंजीयक द्वारा पंजी RNI DelHin 11786/2001) 10 वर्ष पूर्व स्वस्थ समाचारों के प्रतिनिधि बना युगदर्पण अब उनके प्रतीक के रूपमें पहचाना जाता है. विविधतापूर्ण किन्तु सप्तगुणयुक्त- सार्थक,सटीक, स्वस्थ,सोम्य, सुघड़,सुस्पष्ट, व सुरुचिपूर्ण पत्रकारिता का एक ही नाम युगदर्पण. पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है (हरयाणा/पंजाब में सूचीबद्ध)- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... युगदर्पण मित्र मंडल Yug Darpan

panjabi...ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਮਿਤ੍ਰ ਮਂਡਲ Yug Darpan ਸਭੀ ਭਾਸ਼ਾਓਂ ਮੇਂ

ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਮਿਤ੍ਰ ਮਂਡਲ Yug Darpan 
ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਕੀ ਯੋਜਨਾ, ਹਿਂਦੀ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਭੀ ਭਾਸ਼ਾਓਂ ਮੇਂ
ਸਮਰ੍ਥ ਸਸ਼ਕ੍ਤ ਵ ਸਮਰਦ੍ਧ ਭਾਰਤ ਹੇਤੁ ..ਰਾਸ਼੍ਟ੍ਰ ਹਿਤ ਸਰ੍ਵੋਪਰਿ -
ਯੂਨਾਨ ਮਿਸ੍ਰ ਰੋਮਾ ਸਬ ਮਿਟ ਗਏ ਜਹਾਂ ਸੇ
ਕੁਛ ਬਾਤ ਹੈ ਕਿ ਅਬ ਤਕ ਬਾਕਿ ਨਿਸ਼ਾਨ ਹਮਾਰਾ !
ਯਹ ਰਾਸ਼੍ਟ੍ਰ ਹਮਾਰੀ ਪਹਚਾਨ ਹੈ, ਇਸਕੇ ਬਿਨਾ ਹਮਾਰਾ ਕੋਈ ਅਸ੍ਤਿਤ੍ਵ ਨਹੀਂ !
ਪਤਂਗ ਆਕਾਸ਼ ਮੇਂ ਜੋ ਤਨ ਕੇ ਉਡ਼ਾ ਕਰਤੀ ਹੈ,
ਜਡ਼ੋਂ ਸੇ ਕਟ ਕੇ ਵੋ ਪੈਰੋਂ ਮੇਂ ਗਿਰਾ ਕਰਤੀ ਹੈ
..ਵਰ੍ਤਮਾਨ ਭ੍ਰਸ਼੍ਟ, ਵਿਕਰਤ ਪਤ੍ਰਕਾਰਿਤਾ ਕਾ ਹੀ ਸਾਰ੍ਥਕ ਵਿਕਲ੍ਪ ਦੇਨੇ ਕਾ ਪ੍ਰਯਾਸ ਵਿਗਤ 10 ਵਰ੍ਸ਼ ਸੇ ਚਲ ਰਹਾ ਹੈ!
ਚੈਤ੍ਰ ਨਵ ਰਾਤ੍ਰ (4 ਅਪ੍ਰੇਲ) ਯੁਗ ਦਰ੍ਪਣ ਕਾ ਸ੍ਥਾਪਨਾ ਦਿਵਸ ਹੈ! ਦੇਸ਼ ਕੇ ਸਭੀ ਰਾਜ੍ਯੋਂ ਮੇਂ ਸ਼ਾਖਾ ਵਿਸ੍ਤਾਰ ਕਰਨਾ ਹੈ !
-ਅਭੀ ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਕੋ ਸ਼ੀਘ੍ਰ ਹੀ ਸਭੀ ਭਾਸ਼ਾਓਂ ਮੇਂ ਕਰਨਾ ਹੈ, ਕ੍ਯਾ ਆਪ ਇਸਸੇ ਜੁਡ਼ਨਾ ਚਾਹਤੇ ਹੈਂ?
ਏਕ ਸਾਰ੍ਥਕ ਪਹਲ ਮੀਡਿਯਾ ਕੇ ਕ੍ਸ਼ੇਤ੍ਰ ਮੇਂ ਰਾਸ਼੍ਟ੍ਰੀਯ ਸਾਪ੍ਤਾਹਿਕ ਯੁਗ ਦਰ੍ਪਣ (ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਕੇ ਸੂਚਨਾ ਪ੍ਰਸਾਰਣ ਕੇ ਸਮਾਚਾਰ ਪਤ੍ਰ ਪਂਜੀਯਕ ਦ੍ਵਾਰਾ ਪਂਜੀ RNI DelHin 11786/2001) 10 ਵਰ੍ਸ਼ ਪੂਰ੍ਵ ਸ੍ਵਸ੍ਥ ਸਮਾਚਾਰੋਂ ਕੇ ਪ੍ਰਤਿਨਿਧਿ ਬਨਾ ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਅਬ ਉਨਕੇ ਪ੍ਰਤੀਕ ਕੇ ਰੂਪਮੇਂ ਪਹਚਾਨਾ ਜਾਤਾ ਹੈ. ਵਿਵਿਧਤਾਪੂਰ੍ਣ ਕਿਨ੍ਤੁ ਸਪ੍ਤਗੁਣਯੁਕ੍ਤ- ਸਾਰ੍ਥਕ,ਸਟੀਕ, ਸ੍ਵਸ੍ਥ,ਸੋਮ੍ਯ, ਸੁਘਡ਼,ਸੁਸ੍ਪਸ਼੍ਟ, ਵ ਸੁਰੁਚਿਪੂਰ੍ਣ ਪਤ੍ਰਕਾਰਿਤਾ ਕਾ ਏਕ ਹੀ ਨਾਮ ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ. ਪਤ੍ਰਕਾਰਿਤਾ ਵ੍ਯਵਸਾਯ ਨਹੀਂ ਏਕ ਮਿਸ਼ਨ ਹੈ (ਹਰਯਾਣਾ/ਪਂਜਾਬ ਮੇਂ ਸੂਚੀਬਦ੍ਧ)- ਤਿਲਕ ਸਂਪਾਦਕ ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... ਯੁਗਦਰ੍ਪਣ ਮਿਤ੍ਰ ਮਂਡਲ Yug Darpan

Guj...યુગદર્પણ મિત્ર મંડલ Yug Darpan સભી ભાષાઓઁ મેં

યુગદર્પણ મિત્ર મંડલ Yug Darpan 
યુગદર્પણ કી યોજના, હિંદી હી નહીં સભી ભાષાઓઁ મેં
સમર્થ સશક્ત વ સમૃદ્ધ ભારત હેતુ ..રાષ્ટ્ર હિત સર્વોપરિ -
યૂનાન મિસ્ર રોમા સબ મિટ ગએ જહાઁ સે
કુછ બાત હૈ કિ અબ તક બાકિ નિશાન હમારા !
યહ રાષ્ટ્ર હમારી પહચાન હૈ, ઇસકે બિના હમારા કોઈ અસ્તિત્વ નહીં !
પતંગ આકાશ મેં જો તન કે ઉડ઼ા કરતી હૈ,
જડ઼ોં સે કટ કે વો પૈરોં મેં ગિરા કરતી હૈ
..વર્તમાન ભ્રષ્ટ, વિકૃત પત્રકારિતા કા હી સાર્થક વિકલ્પ દેને કા પ્રયાસ વિગત 10 વર્ષ સે ચલ રહા હૈ!
ચૈત્ર નવ રાત્ર (4 અપ્રેલ) યુગ દર્પણ કા સ્થાપના દિવસ હૈ! દેશ કે સભી રાજ્યોં મેં શાખા વિસ્તાર કરના હૈ !
-અભી યુગદર્પણ કો શીઘ્ર હી સભી ભાષાઓઁ મેં કરના હૈ, ક્યા આપ ઇસસે જુડ઼ના ચાહતે હૈં?
એક સાર્થક પહલ મીડિયા કે ક્ષેત્ર મેં રાષ્ટ્રીય સાપ્તાહિક યુગ દર્પણ (ભારત સરકાર કે સૂચના પ્રસારણ કે સમાચાર પત્ર પંજીયક દ્વારા પંજી RNI DelHin 11786/2001) 10 વર્ષ પૂર્વ સ્વસ્થ સમાચારોં કે પ્રતિનિધિ બના યુગદર્પણ અબ ઉનકે પ્રતીક કે રૂપમેં પહચાના જાતા હૈ. વિવિધતાપૂર્ણ કિન્તુ સપ્તગુણયુક્ત- સાર્થક,સટીક, સ્વસ્થ,સોમ્ય, સુઘડ઼,સુસ્પષ્ટ, વ સુરુચિપૂર્ણ પત્રકારિતા કા એક હી નામ યુગદર્પણ. પત્રકારિતા વ્યવસાય નહીં એક મિશન હૈ (હરયાણા/પંજાબ મેં સૂચીબદ્ધ)- તિલક સંપાદક યુગદર્પણ 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... યુગદર્પણ મિત્ર મંડલ Yug Darpan
Bangla...আ.সূচনা,...যুগদর্পণ মিত্র মংডল Yug Darpan সভী ভাষাওঁ মেং
যুগ দর্পণ হিংদী রাষ্ট্রীয সমাচারপত্র
সমর্থ সশক্ত ব সমৃদ্ধ ভারত হেতু ..রাষ্ট্র হিত সর্বোপরি -
যূনান মিস্র রোমা সব মিট গএ জহাঁ সে
কুছ বাত হৈ কি অব তক বাকি নিশান হমারা !
যহ রাষ্ট্র হমারী পহচান হৈ, ইসকে বিনা হমারা কোঈ অস্তিত্ব নহীং !
পতংগ আকাশ মেং জো তন কে উড়া করতী হৈ,
জড়োং সে কট কে বো পৈরোং মেং গিরা করতী হৈ
..বর্তমান ভ্রষ্ট, বিকৃত পত্রকারিতা কা হী সার্থক বিকল্প দেনে কা প্রযাস বিগত 10 বর্ষ সে চল রহা হৈ!
চৈত্র নব রাত্র (4 অপ্রেল) যুগ্দার্পণ কা স্থাপনা দিবস হৈ! দেশ কে সভী রাজ্যোং মেং শাখা বিস্তার করনা হৈ !
-অভী যুগদর্পণ কো শীঘ্র হী সভী ভাষাওঁ মেং করনা হৈ, ক্যা আপ ইসসে জুড়না চাহতে হৈং?
এক সার্থক পহল মীডিযা কে ক্ষেত্র মেং রাষ্ট্রীয সাপ্তাহিক যুগ দর্পণ (ভারত সরকার কে সূচনা প্রসারণ কে সমাচার পত্র পংজীযক দ্বারা পংজী RNI DelHin 11786/2001) 10 বর্ষ পূর্ব স্বস্থ সমাচারোং কে প্রতিনিধি বনা যুগদর্পণ অব উনকে প্রতীক কে রূপমেং পহচানা জাতা হৈ. বিবিধতাপূর্ণ কিন্তু সপ্তগুণযুক্ত- সার্থক,সটীক, স্বস্থ,সোম্য, সুঘড়,সুস্পষ্ট, ব সুরুচিপূর্ণ পত্রকারিতা কা এক হী নাম যুগদর্পণ. পত্রকারিতা ব্যবসায নহীং এক মিশন হৈ (হরযাণা/পংজাব মেং সূচীবদ্ধ)- তিলক সংপাদক যুগদর্পণ 09911111611,
comm on orkut / grp on face book ... যুগদর্পণ মিত্র মংডল Yug Darpa
Tamil...ஆ.ஸூசநா,...யுகதர்பண மித்ர மஂடல Yug Darpan ஸபீ பாஷாஓஂ மேஂ
யுக தர்பண ஹிஂதீ ராஷ்ட்ரீய ஸமாசாரபத்ர
ஸமர்த ஸஸக்த வ ஸமர்த்த பாரத ஹேது ..ராஷ்ட்ர ஹித ஸர்வோபரி -
யூநாந மிஸ்ர ரோமா ஸப மிட கஏ ஜஹாஂ ஸே
குச பாத ஹை கி அப தக பாகி நிஸாந ஹமாரா !
யஹ ராஷ்ட்ர ஹமாரீ பஹசாந ஹை, இஸகே பிநா ஹமாரா கோஈ அஸ்தித்வ நஹீஂ !
பதஂக ஆகாஸ மேஂ ஜோ தந கே உடா கரதீ ஹை,
ஜடோஂ ஸே கட கே வோ பைரோஂ மேஂ கிரா கரதீ ஹை
..வர்தமாந ப்ரஷ்ட, விகர்த பத்ரகாரிதா கா ஹீ ஸார்தக விகல்ப தேநே கா ப்ரயாஸ விகத 10 வர்ஷ ஸே சல ரஹா ஹை!
சைத்ர நவ ராத்ர (4 அப்ரேல) யுக்தார்பண கா ஸ்தாபநா திவஸ ஹை! தேஸ கே ஸபீ ராஜ்யோஂ மேஂ ஸாகா விஸ்தார கரநா ஹை !
-அபீ யுகதர்பண கோ ஸீக்ர ஹீ ஸபீ பாஷாஓஂ மேஂ கரநா ஹை, க்யா ஆப இஸஸே ஜுடநா சாஹதே ஹைஂ?
ஏக ஸார்தக பஹல மீடியா கே க்ஷேத்ர மேஂ ராஷ்ட்ரீய ஸாப்தாஹிக யுக தர்பண (பாரத ஸரகார கே ஸூசநா ப்ரஸாரண கே ஸமாசார பத்ர பஂஜீயக த்வாரா பஂஜீ RNI DelHin 11786/2001) 10 வர்ஷ பூர்வ ஸ்வஸ்த ஸமாசாரோஂ கே ப்ரதிநிதி பநா யுகதர்பண அப உநகே ப்ரதீக கே ரூபமேஂ பஹசாநா ஜாதா ஹை. விவிததாபூர்ண கிந்து ஸப்தகுணயுக்த- ஸார்தக,ஸடீக, ஸ்வஸ்த,ஸோம்ய, ஸுகட,ஸுஸ்பஷ்ட, வ ஸுருசிபூர்ண பத்ரகாரிதா கா ஏக ஹீ நாம யுகதர்பண. பத்ரகாரிதா வ்யவஸாய நஹீஂ ஏக மிஸந ஹை (ஹரயாணா/பஂஜாப மேஂ ஸூசீபத்த)- திலக ஸஂபாதக யுகதர்பண 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... யுகதர்பண மித்ர மஂடல Yug Darpan
Telugu...ఆ.సూచనా,...యుగదర్పణ మిత్ర మండల Yug Darpan సభీ భాషాఓఁ మేం
యుగ దర్పణ హిందీ రాష్ట్రీయ సమాచారపత్ర
సమర్థ సశక్త వ సమృద్ధ భారత హేతు ..రాష్ట్ర హిత సర్వోపరి -
యూనాన మిస్ర రోమా సబ మిట గఏ జహాఁ సే
కుఛ బాత హై కి అబ తక బాకి నిశాన హమారా !
యహ రాష్ట్ర హమారీ పహచాన హై, ఇసకే బినా హమారా కోఈ అస్తిత్వ నహీం !
పతంగ ఆకాశ మేం జో తన కే ఉడా కరతీ హై,
జడోం సే కట కే వో పైరోం మేం గిరా కరతీ హై
..వర్తమాన భ్రష్ట, వికృత పత్రకారితా కా హీ సార్థక వికల్ప దేనే కా ప్రయాస విగత 10 వర్ష సే చల రహా హై!
చైత్ర నవ రాత్ర (4 అప్రేల) యుగ్దార్పణ కా స్థాపనా దివస హై! దేశ కే సభీ రాజ్యోం మేం శాఖా విస్తార కరనా హై !
-అభీ యుగదర్పణ కో శీఘ్ర హీ సభీ భాషాఓఁ మేం కరనా హై, క్యా ఆప ఇససే జుడనా చాహతే హైం?
ఏక సార్థక పహల మీడియా కే క్షేత్ర మేం రాష్ట్రీయ సాప్తాహిక యుగ దర్పణ (భారత సరకార కే సూచనా ప్రసారణ కే సమాచార పత్ర పంజీయక ద్వారా పంజీ RNI DelHin 11786/2001) 10 వర్ష పూర్వ స్వస్థ సమాచారోం కే ప్రతినిధి బనా యుగదర్పణ అబ ఉనకే ప్రతీక కే రూపమేం పహచానా జాతా హై. వివిధతాపూర్ణ కిన్తు సప్తగుణయుక్త- సార్థక,సటీక, స్వస్థ,సోమ్య, సుఘడ,సుస్పష్ట, వ సురుచిపూర్ణ పత్రకారితా కా ఏక హీ నామ యుగదర్పణ. పత్రకారితా వ్యవసాయ నహీం ఏక మిశన హై (హరయాణా/పంజాబ మేం సూచీబద్ధ)- తిలక సంపాదక యుగదర్పణ 09911111611,
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Malm...യുഗദര്പണ മിത്ര മംഡല Yug Darpan സഭീ ഭാഷാഓം മേം

യുഗദര്പണ മിത്ര മംഡല Yug Darpan 
യുഗദര്പണ കീ യോജനാ, ഹിംദീ ഹീ നഹീം സഭീ ഭാഷാഓം മേം
സമര്ഥ സശക്ത വ സമൃദ്ധ ഭാരത ഹേതു ..രാഷ്ട്ര ഹിത സര്വോപരി -
യൂനാന മിസ്ര രോമാ സബ മിട ഗഏ ജഹാം സേ
കുഛ ബാത ഹൈ കി അബ തക ബാകി നിശാന ഹമാരാ !
യഹ രാഷ്ട്ര ഹമാരീ പഹചാന ഹൈ, ഇസകേ ബിനാ ഹമാരാ കോഈ അസ്തിത്വ നഹീം !
പതംഗ ആകാശ മേം ജോ തന കേ ഉഡാ കരതീ ഹൈ,
ജഡോം സേ കട കേ വോ പൈരോം മേം ഗിരാ കരതീ ഹൈ
..വര്തമാന ഭ്രഷ്ട, വികൃത പത്രകാരിതാ കാ ഹീ സാര്ഥക വികല്പ ദേനേ കാ പ്രയാസ വിഗത 10 വര്ഷ സേ ചല രഹാ ഹൈ!
ചൈത്ര നവ രാത്ര (4 അപ്രേല) യുഗ ദര്പണ കാ സ്ഥാപനാ ദിവസ ഹൈ! ദേശ കേ സഭീ രാജ്യോം മേം ശാഖാ വിസ്താര കരനാ ഹൈ !
-അഭീ യുഗദര്പണ കോ ശീഘ്ര ഹീ സഭീ ഭാഷാഓം മേം കരനാ ഹൈ, ക്യാ ആപ ഇസസേ ജുഡനാ ചാഹതേ ഹൈം?
ഏക സാര്ഥക പഹല മീഡിയാ കേ ക്ഷേത്ര മേം രാഷ്ട്രീയ സാപ്താഹിക യുഗ ദര്പണ (ഭാരത സരകാര കേ സൂചനാ പ്രസാരണ കേ സമാചാര പത്ര പംജീയക ദ്വാരാ പംജീ RNI DelHin 11786/2001) 10 വര്ഷ പൂര്വ സ്വസ്ഥ സമാചാരോം കേ പ്രതിനിധി ബനാ യുഗദര്പണ അബ ഉനകേ പ്രതീക കേ രൂപമേം പഹചാനാ ജാതാ ഹൈ. വിവിധതാപൂര്ണ കിന്തു സപ്തഗുണയുക്ത- സാര്ഥക,സടീക, സ്വസ്ഥ,സോമ്യ, സുഘഡ,സുസ്പഷ്ട, വ സുരുചിപൂര്ണ പത്രകാരിതാ കാ ഏക ഹീ നാമ യുഗദര്പണ. പത്രകാരിതാ വ്യവസായ നഹീം ഏക മിശന ഹൈ (ഹരയാണാ/പംജാബ മേം സൂചീബദ്ധ)- തിലക സംപാദക യുഗദര്പണ 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... യുഗദര്പണ മിത്ര മംഡല Yug Darpan

Kann....ಯುಗದರ್ಪಣ ಮಿತ್ರ ಮಂಡಲ Yug Darpan ಸಭೀ ಭಾಷಾಓಂ ಮೇಂ

ಯುಗದರ್ಪಣ ಮಿತ್ರ ಮಂಡಲ Yug Darpan 
ಯುಗದರ್ಪಣ ಕೀ ಯೋಜನಾ, ಹಿಂದೀ ಹೀ ನಹೀಂ ಸಭೀ ಭಾಷಾಓಂ ಮೇಂ
ಸಮರ್ಥ ಸಶಕ್ತ ವ ಸಮೃದ್ಧ ಭಾರತ ಹೇತು ..ರಾಷ್ಟ್ರ ಹಿತ ಸರ್ವೋಪರಿ -
ಯೂನಾನ ಮಿಸ್ರ ರೋಮಾ ಸಬ ಮಿಟ ಗಏ ಜಹಾಂ ಸೇ
ಕುಛ ಬಾತ ಹೈ ಕಿ ಅಬ ತಕ ಬಾಕಿ ನಿಶಾನ ಹಮಾರಾ !
ಯಹ ರಾಷ್ಟ್ರ ಹಮಾರೀ ಪಹಚಾನ ಹೈ, ಇಸಕೇ ಬಿನಾ ಹಮಾರಾ ಕೋಈ ಅಸ್ತಿತ್ವ ನಹೀಂ !
ಪತಂಗ ಆಕಾಶ ಮೇಂ ಜೋ ತನ ಕೇ ಉಡಾ ಕರತೀ ಹೈ,
ಜಡೋಂ ಸೇ ಕಟ ಕೇ ವೋ ಪೈರೋಂ ಮೇಂ ಗಿರಾ ಕರತೀ ಹೈ
..ವರ್ತಮಾನ ಭ್ರಷ್ಟ, ವಿಕೃತ ಪತ್ರಕಾರಿತಾ ಕಾ ಹೀ ಸಾರ್ಥಕ ವಿಕಲ್ಪ ದೇನೇ ಕಾ ಪ್ರಯಾಸ ವಿಗತ 10 ವರ್ಷ ಸೇ ಚಲ ರಹಾ ಹೈ!
ಚೈತ್ರ ನವ ರಾತ್ರ (4 ಅಪ್ರೇಲ) ಯುಗ ದರ್ಪಣ ಕಾ ಸ್ಥಾಪನಾ ದಿವಸ ಹೈ! ದೇಶ ಕೇ ಸಭೀ ರಾಜ್ಯೋಂ ಮೇಂ ಶಾಖಾ ವಿಸ್ತಾರ ಕರನಾ ಹೈ !
-ಅಭೀ ಯುಗದರ್ಪಣ ಕೋ ಶೀಘ್ರ ಹೀ ಸಭೀ ಭಾಷಾಓಂ ಮೇಂ ಕರನಾ ಹೈ, ಕ್ಯಾ ಆಪ ಇಸಸೇ ಜುಡನಾ ಚಾಹತೇ ಹೈಂ?
ಏಕ ಸಾರ್ಥಕ ಪಹಲ ಮೀಡಿಯಾ ಕೇ ಕ್ಷೇತ್ರ ಮೇಂ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಸಾಪ್ತಾಹಿಕ ಯುಗ ದರ್ಪಣ (ಭಾರತ ಸರಕಾರ ಕೇ ಸೂಚನಾ ಪ್ರಸಾರಣ ಕೇ ಸಮಾಚಾರ ಪತ್ರ ಪಂಜೀಯಕ ದ್ವಾರಾ ಪಂಜೀ RNI DelHin 11786/2001) 10 ವರ್ಷ ಪೂರ್ವ ಸ್ವಸ್ಥ ಸಮಾಚಾರೋಂ ಕೇ ಪ್ರತಿನಿಧಿ ಬನಾ ಯುಗದರ್ಪಣ ಅಬ ಉನಕೇ ಪ್ರತೀಕ ಕೇ ರೂಪಮೇಂ ಪಹಚಾನಾ ಜಾತಾ ಹೈ. ವಿವಿಧತಾಪೂರ್ಣ ಕಿನ್ತು ಸಪ್ತಗುಣಯುಕ್ತ- ಸಾರ್ಥಕ,ಸಟೀಕ, ಸ್ವಸ್ಥ,ಸೋಮ್ಯ, ಸುಘಡ,ಸುಸ್ಪಷ್ಟ, ವ ಸುರುಚಿಪೂರ್ಣ ಪತ್ರಕಾರಿತಾ ಕಾ ಏಕ ಹೀ ನಾಮ ಯುಗದರ್ಪಣ. ಪತ್ರಕಾರಿತಾ ವ್ಯವಸಾಯ ನಹೀಂ ಏಕ ಮಿಶನ ಹೈ (ಹರಯಾಣಾ/ಪಂಜಾಬ ಮೇಂ ಸೂಚೀಬದ್ಧ)- ತಿಲಕ ಸಂಪಾದಕ ಯುಗದರ್ಪಣ 09911111611, comm on orkut / grp on face book ... ಯುಗದರ್ಪಣ ಮಿತ್ರ ಮಂಡಲ Yug Darpan
A +ve substitute to present -ve media emerged as a mission for last 10 yrs. all subjects in refined, compact form- Yug Darpan National Hindi weeklyfrom Delhi. Empanelled with Haryana Govt, & Punjab Govt, Fast expanding to other states, likely to convert to a Daily, & a TV channel, with your support.
Those interested may contact 09911111611, or युगदर्पण मित्र मंडल YugDarpan Fans Club (grp on FB, comm on orkut)