उल्लेखनीय है कि पूरा पश्चिमी मध्यप्रदेश सिमी (Students Islamic Movement of India) का गढ़ माना जाता है, उज्जैन, इन्दौर, शाजापुर, मक्सी, महिदपुर, उन्हेल, नागदा, खाचरौद आदि नगरों-कस्बों में सिमी का जाल बिछा हुआ है। कुछ माह पहले सिमी के सफ़दर नागौरी को इन्दौर पुलिस ने इन्दौर से ही पकड़ा था, जबकि उन्हेल के एक अन्य "मासूम" सोहराबुद्दीन को गुजरात पुलिस ने एनकाउंटर में मारा था, सोहराबुद्दीन इतना "मासूम" था, कि इसे पता ही नहीं था कि उसके घर के कुँए में AK-56 पड़ी हुई है। ऐसे संवेदनशील इलाके में उत्तरप्रदेश से आये हुए यह संदिग्ध लोग क्या कर रहे थे और इनके इरादे क्या थे… यह समझने के लिये कोई बड़ी विद्वत्ता की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते आप सेकुलर और कांग्रेसी ना हों। हालांकि हो सकता है कि ये सभी लोग बाद में न्यायालय में "मासूम" और "गुमराह" सिद्ध हो जायें, क्योंकि इन्हें कोई न कोई "राष्ट्रभक्त वकील" मिल ही जायेगा, और न्यायालय के बाहर तो सीतलवाडों, आजमियों, महेश भट्टों की कोई कमी है ही नहीं।
उधर कश्मीर में "मासूम" और "गुमराह" लड़के CRPF के जवानों को सड़क पर घेरकर मार भी रहे हैं, और पत्थर फ़ेंकने में भी पैसा कमा रहे हैं (यहाँ देखें…)। आजमगढ़ के "मासूम" तो खैर विश्वप्रसिद्ध हैं ही, बाटला हाउस के "गुमराह" भी उनके साथ विश्वप्रसिद्ध हो लिये। उधर कोलकाता में भी "मासूम" लोग कभी बुरका पहनने के लिये दबाव बना रहे हैं (यहाँ देखें...), तो कभी "गुमराह" लड़के हिन्दू लड़कियों को छेड़छाड़ और मारपीट कर देते हैं (यहाँ देखें…)। असम में तो बेचारे इतने "मासूम मुस्लिम" हैं कि उन्हें यही नहीं पता होता कि, जो झण्डा वे फ़हरा रहे हैं वह भारत का है या पाकिस्तान का?
ऐसे "मासूम", "गुमराह", "बेगुनाह", "बेकसूर", "मज़लूम", "सताये हुए", "पीड़ित" (कुछ छूट गया हो तो अपनी तरफ़ से जोड़ लीजियेगा) कांग्रेस-सपा-बसपा के प्यारे-प्यारे बच्चों और युवाओं को हमें स्कॉलरशिप देना चाहिये, उत्साहवर्धन करना चाहिये, आर्थिक पैकेज देना चाहिये… और भी जो कुछ बन पड़े वह करना चाहिये, उन्हें कोई दुख नहीं पहुँचना चाहिये।
बारिश के दिनों में अक्सर भारत की नदियों से पाकिस्तान और बांग्लादेश में बाढ़ आती है, लेकिन "मासूमों" और "गुमराहों" की बाढ़ साल भर उल्टी दिशा में बहती है यानी पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत की तरफ़ को। इसलिये आप ध्यान रखें कि जैसे ही कोई मुस्लिम युवक किसी लव जेहाद या आतंकवादी या भड़काऊ भाषण, या पत्थरबाजी, या छेड़छाड़ जैसी घटना में पकड़ाये, तो तड़ से समझ जाईये और मान भी लीजिये कि वह "मासूम" और "गुमराह" ही है। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं…… बल्कि तीस्ता आंटी, जावेद अंकल, महेश मामा, मनीष तिवारी चाचा, बुरका (सॉरी बरखा) दत्त चाची, और मीडिया में बैठे बुद्धिजीवी लोग आपसे आग्रह कर रहे हैं… तात्पर्य यह है कि समूचे भारत में "मासूमों" और "गुमराहों" की बाढ़ आई हुई है, और इसे रोकना बड़ा मुश्किल है…। और तो और अब "मासूमियत की सुनामी", शीला दीक्षित सरकार की दहलीज और राष्ट्रपति भवन के अहाते तक पहुँच गई है, क्योंकि मासूमों के शहंशाह "अफ़ज़ल गुरु" को बचाने में पूरा जोर लगाया जा रहा है, जबकि उधर मुम्बई में "गुमराहों का बादशाह" अजमल कसाब चिकन उड़ा रहा है, इत्र लगा रहा है…।
ऐसा भी नहीं कि मासूम और गुमराह सिर्फ़ भारत में ही पाये जाते हैं, उधर अमेरिका में भी पढ़े-लिखे, दिमागदार, अच्छी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले शहजाद जैसे युवा और अबू निदाल मलिक जैसे अमेरिका के नागरिक भी मासूमियत और गुमराहियत की गंगा में डुबकी लगाते रहते हैं… (यहाँ देखें…) अन्तर सिर्फ़ इतना है उधर भारत की तरह "रबर स्टाम्प" राष्ट्रपति नहीं होता बल्कि "पिछवाड़ा गरम करने वाली" ग्वान्तानामो बे जैसी जेलें होती हैं…
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चलते-चलते : अन्त में एक आसान सा "मासूम" सवाल (जिसका जवाब सभी को पता है) पूछने को जी चाहता है, कि क्या "गुमराह" और "मासूम" होने का ठेका सिर्फ़ कट्टर मुस्लिमों को ही मिला है? "मुस्लिमों"??? सॉरी अल्पसंख्यकों… सॉरी मुस्लिमों… ओह सॉरी अल्पसंख्यकों… अरे!! फ़िर सॉरी…। छोड़ो… जाने भी दो यारों… दोनों शब्दों का मतलब एक ही होता है… जिसका नया पर्यायवाची है "मासूम और गुमराह"।
क्यों उमर अब्दुल्ला साहब, आपका क्या विचार है???
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण