Sunday, 21 March 2010
शहीद शिरोमणि भगत सिंह
(23 /3 /2010) उनके बलिदान की 75वर्ष की स्मृति में कुछ लोग यह भ्रम फ़ैलाने के प्रयास में हैं कि भगत सिंह मार्क्स प्रेमी थे उनके शहीदी दिवस पर उस भ्रम का निवारण करने का प्रयास तिलक संपादक युगदर्पण:- क्या आप जानते व मानते हैं;
1) इस देश केलिए अपने प्राणों की बलि देने वाले शहीद शिरोमणि भगत सिंह को ऐसे वामपंथ से जोड़ना जिनकी निष्ठा भारत और भारतीय संस्कृती में नहीं, उनके बलिदान का अपमान है! वामपंथ के पाखंड से अनजान क्रांति शब्द ने उन्हें यदि मार्क्स को पढ़ने के लिए उकसाया होतो उसे पढ़नेसे मार्क्सवादी नहीं होजाते! हिंदुत्व को गाली देनेवाले वामपंथियों ने हिन्दू ग्रन्थ पढ़े होंगे, तो क्या वो स्वयं को हिन्दू मानते हैं,नहीं न? उन दिनों जापान और रूस भी अंग्रेजों से लड़रहे थे नेताजी ने भारत की लड़ाई का केंद्र जापान को बनाया तो क्या वे जापानी होगए? ICS के पद पर चयन, होने पर उसे भारत की स्वतंत्रता के लिए ठुकराया था या जापान के लिए ?इसी प्रकार शत्रुके शत्रु रूस को मित्र मान भी लिया जाये तो इसका अर्थ जो वामपंथी समझाने का प्रयास कर रहे हैं वह कदापि नहींहो सकता ! मेरा रंगदे बसंती चोला/लाल चोला नहीं उनके भारतीय संस्कृती निष्ठ होने का प्रमाण है,वामपंथी होने का नहीं ! वे मार्क्स प्रेमी नहीं सच्चे राष्ट्र प्रेमी थे, अन्त तक भारतीय संस्कृति के पक्के अनुयायी थे!
2)..25--30 वर्ष पूर्व फिल्म,तकनीक की कमियों के बाद भी उच्च
स्तर की थी;आज उल्टा होगया है! यही स्थिति मिडिया की भी है!
मिडिया एथिक्स/मूल्य प्रमाणिकता, प्रमाण पत्र मिलने के बाद
भूल जाते है! समाज अपराध,अनैतिकता का अनुसधान केंद्र/कार्य
क्षेत्र बन चुका है साथ ही देश केसांस्कृतिक व सूचना जनसंचार
माध्यमों पर शिकंजाकस हिंदुत्व को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर ढूंढ़ कर इकट्ठे होने वाले कथित बुद्धिजीवी बुद्धिविलासी इस समाज में वैचारिक व सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाकर अँधेरे का साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं! इसे भी रोकना आवश्यक है! 3) मार्क्स और मैकाले की नाजायज संतानें पुस्तकीय शिक्षा, उपाधि पा कर बने नव विद्वान्,आज़ादी और अधिकारों की दुहाई
देकर अपती विक्षिप्त मानसिकता का परिचय देतेहुए,आधुनिकता की चमक दिखा कर, इस देश की संस्कृति व सौम्य जीवन को
प्रदूषित कर रहे हैं! हमारे अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं !
हमारे मंदिरों में ऐसी मानसिकता के लोगों ने शिल्प के नाम पर ऐसी विकृत मानसिकता का परिचय दिया और इसी मानसिकता के गाइड उसका प्रचार करते रहे! एक व्यापक कुचक्र के अंतर्गत
अब उसे विकृति नहीं संस्कृति का अंग बताया जा रहा है! इसको समझने व समझाने की आवश्यकता हैं! अभिव्यक्ति, आधुनिकता के आडम्बर इसकी ढाल न बने, इसके प्रति चेतना जगाएं, राष्ट्र को (भेड़ की खाल में भेड़ियों) मानवतावाद की आढ़ लेते इन शत्रुओं से बचाएं ! इसलिए इनको समझने व पहचानने की आवश्यकता है ! इस राष्ट्रीय मिशन को लेकर चले व युग दर्पण का उदय हुआ जिस की दसवीं वर्ष गांठ १६/३/१० को वर्ष प्रतिपदा के दिन मनाई गई !
4) पोथी पड़ने से ज्ञानी न बने लेखन से न विद्वान्, अनुभव और संस्कार बिन हानी हो यह मान! कहे तिलक कविराय बिना सधी तलवार को ऐसे नहीं चलाय, घाव भी ये कर जाएगी और ले लेगी
प्राण!!उसीके विकल्पका प्रयास है! आपके सहयोगसे सफल होगा! पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण
जीवन के हर रूप/हर रंग/हर पक्ष के दर्द को समझने के
प्रयास में--अंतरताने पर ब्लॉग शृंखला.. (20 दर्पण+5)
अन्तरिक्ष/चेतना/राष्ट्र/धर्मसंस्कृति/ज्ञानविज्ञान/जीवनशैली
/जीवनमेला/महिलाघरपरिवार/पर्यावरण/पर्यटनधरोहर/
प्रतिभाप्रबंधनपरिणति/समाज/शिक्षा/कार्यक्षेत्र/सर्वसमाचार
/ठिठोली/विश्व/सत्य/युवा एवं युग दर्पण,भारतचौपल, देशकीमिट्टी, फ़िल्मफ़ैशनक्लबफ़ंडा,काव्यांज्लिका,
रचनाकारका.ब्लॉगस्पाट.काम की पूरी श्रंखला प्रस्तुत है.
All are on Blogspot.com
just click on Google Address Baar.
http://www/.___ .blogspot.com/
Kaavyaanjalikaa__Rachnaakaarkaa__
(blog for Poety and other creative Activities)
ThitholeeDarpan_हास्य ठिठोली जीवन में आवश्यक है
किन्तु जीवन ठिठोली नहीं है, न बना दी जाए!.इस पूरी
शृंखला में भारत की सभी प्रकार की पीड़ा की अभिव्यक्ति है
आप इन सभी या इनमें से किसी भी पीड़ा को व्यक्त करने
हेतू कोई भी ब्लॉग चुन सकते हैं, लिख सकते हैं. और अब
http://www.deshkimitti.feedcluster.com/ भी
हमसे जुड़ने के इच्छुक ईमेल या चैट कर सकते हैं
(युगदर्पण h याहू / गूगल पर उपलब्ध है)
--युगदर्पण समाचार पत्र समूह
तिलक राज रेलन सम्पादक- युग दर्पण
09911111611, 9911145678, 9540007993,-91
http://www.deshkimitti.feedcluster.com/
1) इस देश केलिए अपने प्राणों की बलि देने वाले शहीद शिरोमणि भगत सिंह को ऐसे वामपंथ से जोड़ना जिनकी निष्ठा भारत और भारतीय संस्कृती में नहीं, उनके बलिदान का अपमान है! वामपंथ के पाखंड से अनजान क्रांति शब्द ने उन्हें यदि मार्क्स को पढ़ने के लिए उकसाया होतो उसे पढ़नेसे मार्क्सवादी नहीं होजाते! हिंदुत्व को गाली देनेवाले वामपंथियों ने हिन्दू ग्रन्थ पढ़े होंगे, तो क्या वो स्वयं को हिन्दू मानते हैं,नहीं न? उन दिनों जापान और रूस भी अंग्रेजों से लड़रहे थे नेताजी ने भारत की लड़ाई का केंद्र जापान को बनाया तो क्या वे जापानी होगए? ICS के पद पर चयन, होने पर उसे भारत की स्वतंत्रता के लिए ठुकराया था या जापान के लिए ?इसी प्रकार शत्रुके शत्रु रूस को मित्र मान भी लिया जाये तो इसका अर्थ जो वामपंथी समझाने का प्रयास कर रहे हैं वह कदापि नहींहो सकता ! मेरा रंगदे बसंती चोला/लाल चोला नहीं उनके भारतीय संस्कृती निष्ठ होने का प्रमाण है,वामपंथी होने का नहीं ! वे मार्क्स प्रेमी नहीं सच्चे राष्ट्र प्रेमी थे, अन्त तक भारतीय संस्कृति के पक्के अनुयायी थे!
2)..25--30 वर्ष पूर्व फिल्म,तकनीक की कमियों के बाद भी उच्च
स्तर की थी;आज उल्टा होगया है! यही स्थिति मिडिया की भी है!
मिडिया एथिक्स/मूल्य प्रमाणिकता, प्रमाण पत्र मिलने के बाद
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माध्यमों पर शिकंजाकस हिंदुत्व को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर ढूंढ़ कर इकट्ठे होने वाले कथित बुद्धिजीवी बुद्धिविलासी इस समाज में वैचारिक व सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाकर अँधेरे का साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं! इसे भी रोकना आवश्यक है! 3) मार्क्स और मैकाले की नाजायज संतानें पुस्तकीय शिक्षा, उपाधि पा कर बने नव विद्वान्,आज़ादी और अधिकारों की दुहाई
देकर अपती विक्षिप्त मानसिकता का परिचय देतेहुए,आधुनिकता की चमक दिखा कर, इस देश की संस्कृति व सौम्य जीवन को
प्रदूषित कर रहे हैं! हमारे अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं !
हमारे मंदिरों में ऐसी मानसिकता के लोगों ने शिल्प के नाम पर ऐसी विकृत मानसिकता का परिचय दिया और इसी मानसिकता के गाइड उसका प्रचार करते रहे! एक व्यापक कुचक्र के अंतर्गत
अब उसे विकृति नहीं संस्कृति का अंग बताया जा रहा है! इसको समझने व समझाने की आवश्यकता हैं! अभिव्यक्ति, आधुनिकता के आडम्बर इसकी ढाल न बने, इसके प्रति चेतना जगाएं, राष्ट्र को (भेड़ की खाल में भेड़ियों) मानवतावाद की आढ़ लेते इन शत्रुओं से बचाएं ! इसलिए इनको समझने व पहचानने की आवश्यकता है ! इस राष्ट्रीय मिशन को लेकर चले व युग दर्पण का उदय हुआ जिस की दसवीं वर्ष गांठ १६/३/१० को वर्ष प्रतिपदा के दिन मनाई गई !
4) पोथी पड़ने से ज्ञानी न बने लेखन से न विद्वान्, अनुभव और संस्कार बिन हानी हो यह मान! कहे तिलक कविराय बिना सधी तलवार को ऐसे नहीं चलाय, घाव भी ये कर जाएगी और ले लेगी
प्राण!!उसीके विकल्पका प्रयास है! आपके सहयोगसे सफल होगा! पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण
जीवन के हर रूप/हर रंग/हर पक्ष के दर्द को समझने के
प्रयास में--अंतरताने पर ब्लॉग शृंखला.. (20 दर्पण+5)
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शृंखला में भारत की सभी प्रकार की पीड़ा की अभिव्यक्ति है
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