सांप्रदायिक हिंसा विधेयक पर विवाद
सांप्रदायिक बिल पर गुजरात दंगों से उठे सवालों की छाप साफ़ है
सांप्रदायिक हिंसा की रोकथाम के नाम से बनाए गए बिल पर जहाँ विभिन्न दलों में सहमति नहीं बन पा रही है, गृह सचिव आरके सिंह ने कहा है बिल को विभिन्न विभागों और राज्यों से चर्चा के बाद ही इसे संसद में प्रस्तुत किया जाएगा.
एक तरफ़ जहाँ एनडीए-प्रशासित दलों और दूसरी सरकारों ने बिल के प्रारूप पर चिंता प्रकट की है, जानकारी के अनुसार यूपीए सदस्य तृणमूल ने भी इसे घातक कानून बताया है जिससे देश के संघीय ढाँचे को क्षति पहुँचेगी.
शनिवार से शुरू हुई राष्ट्रीय एकीकरण परिषद की बैठक में राजग(एनडीए) -शासित प्रदेशों ने प्रस्ताव के वर्तमान प्रारूप पर चिंता प्रकट की. तमिलनाडु मुख्यमंत्री जयललिता ने कहा कि इस बिल से राज्यों के अधिकारों पर असर पड़ेगा
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने इसे सांप्रदायिकता बढ़ाने वाला बताया, जबकि तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी ने भी बिल का विरोध किया. उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री की ओर से कहा गया कि उन्हें बिल की प्रति नहीं भेजी गई है इसलिए वो इस पर कुछ नहीं कहेंगी.
गृह सचिव आरके सिंह के अनुसार प्रधानमंत्री की ओर से कहा गया कि उन्होंने सभी चिंताओं को नोट कर लिया है और जो भी बिल लाया जाएगा वो संविधान के अनुसार होगा.
गुजरात दंगों की छाप
सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के तैयार किए गए सांप्रदायिक बिल से सपष्ट है कि मोदी पर गुजरात दंगों से शिकंजा कसने में असमर्थता का दंश है. इस परिषद में ऐसे लोग हैं जो गुजरात दंगों पर गुजरात राज्य सरकार की भूमिका की आलोचक रहे हैं.
इस प्रारूप को सुनियोजित हिंसा रोकने के नाम पर हिन्दुओं को प्रताड़ित करने के लिए तैयार किया गया है. इसमें अफ़सरों को लापरवाली के लिए दंड का प्रावधान है. इसमें राज्य और केंद्र के स्तर पर विशेष एजेंसी बनाने का प्रावधान है जो प्रशासन को अपने इशारे पर नचा सके इस प्रारूप में सांप्रदायिक हिंसा को ऐसी हिंसा बताया गया है जो राष्ट्र के धर्मनिर्पेक्ष ढाँचे को क्षति पहुँचाए. आलोचकों को अनुसार सांप्रदायिक हिंसा की ऐसी अस्पष्ट परिभाषा निर्धारित करना अनुचित व राष्ट्रघाती है.
इस बिल के विरोधियों के अनुसार सबसे अधिक चिंता प्रारूप में इस बात के कहे जाने पर है कि यदि केंद्र चाहे तो राज्य के कामकाज हस्तक्षेप कर सकती है. उनका मानना है कि कानून व्यवस्था राज्य के अधिकारों के अंतर्गत आते हैं, और ऐसे में केंद्र के हस्तक्षेप की बात पर राज्यों में चिंता है विशेषकर पूर्व में जिस तरह केंद्र सरकारें राज्यों के कामकाम में अनैतिक हस्तक्षेप करते रहे हैं.
कई लोगों को प्रारूप से एक और चिंता इस बात पर है कि प्रारूप में सांप्रदायिक हंगामें के लिए बहुसंख्यक समाज को आरोपित कर धार्मिक या भाषाई रूप से अल्पसंख्यक लोग उसका शिकार बताये गए, जो वास्तविकता के परे, व भ्रामक है! आलोचकों के अनुसार ये मान कर चलना कि बहुसंख्यक समुदाय के लोग ही हिंसा करेंगें या फैलाएंगे, ये गलत औऱ आपत्तिजनक सोच है!
इस प्रारूप से केंद्र सरकार सोच सपष्ट है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात दंगों जैसे मामलों में कैसे हिंदुत्ववादी शक्तिओं को कलंकित व दण्डित कर अपने मार्ग को निष्कंटक किया जाए!
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण
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